________________
नासमझ। उनको धर्म का कोई ज्ञान नहीं है, उनको शास्त्रों का कोई पता नहीं है। कि स्त्री साध्वी
को पुरुष का वस्त्र नहीं छूना चाहिए, इस किताब को शायद समुद्र की हवाओं ने नहीं पढ़ा होगा। अब समुद्र की हवा ले गई चादर को, जब तक मैं देखता-देखता चादर तो छू गया है। अब मैंने कहा चादर छू ही गया है तो छू जाने दो, चादर को भी कोई पता नहीं शास्त्रों का। लेकिन साध्वी घबड़ाई। आत्मा की बात चलती थी, परमात्मा की बात चलती थी। बात खत्म हो गई, चेहरा बदल गया। मैंने पूछा, आप कुछ परेशान हो गईं अचानक! उन्होंने कहा, हां, पुरुष का वस्त्र नहीं छूना चाहिए। आपका वस्त्र मुझे छू गया। तो मैंने कहा, अभी तो आप कह रही थीं कि आत्मा ही सत्य है शरीर माया है। लेकिन मालम होता है. चादर आत्मा से भी ज्यादा सत्य है। शरीर माया है, चादर सत्य है। शरीर माया है, पुरुष सत्य है! और मेरा चादर क्या पुरुष हो गया मैंने ओढ़ लिया तो? और स्त्री ओढ़ लेती तो स्त्री हो जाता? बड़े मजे हैं।
हिंदू पानी होता है, मुसलमान पानी होता है, यह मुझे पहली दफा पता चला। कि पुरुष चादर होती है, स्त्री चादर होती है। चादर सिर्फ चादर होती है। लेकिन वे कहने लगी कि नहीं, पुरुष के चादर छूने से कामुकता के पैदा होने का डर होता है। मैंने कहा, वह डर पुरुष के चादर से नहीं होता। वह डर पुरुष से साधी गई दूरी के कारण होता है। जितनी दूरी साधी जाती है, उतना पुरुष का जरा सा संपर्क दूरी को तोड़ता है और भीतर छिपी वासना को प्रकट करता है। जितनी दूरी साधी जाती है जीवन से, उतनी ही जीवन के प्रति कामुकता विकसित होती है।
ब्रह्मचर्य चीजों का फासला नहीं साधता, चीजों के भीतर जो एक है उसको साधता है। सबके भीतर जो एक का विस्तार है, उसका अनुभव करता है, उसका स्मरण करता है, उसमें लीन होता है, उसका साक्षात करता है। और जिस दिन सबके भीतर एक का अनुभव शुरू होता है उस दिन जो घटना घटती है वह ब्रह्मचर्य। ब्रह्मचर्य का संबंध अमैथुन से जरा भी नहीं है। ब्रह्मचर्य घटित होता है तो अमैथुन आता है, लेकिन अमैथुन का नाम ब्रह्मचर्य नहीं है। वह जैसा मैंने कहा प्रेम घटित हो तो अहिंसा आती है, ब्रह्मचर्य घटित हो तो अमैथुन आता है। लेकिन उलटी बात सच नहीं है, कि आपने अमैथुन साध लिया, आपने नो-सेक्सुअलिटी साध ली और आप ब्रह्मचारी हो गए।
तीसरी और अंतिम बात, वह भी ठीक ऐसी ही, क्योंकि वह तो हमारा जो हम इमेज बनाते हैं, उसके सीक्रेट वही हैं, महावीर का तीसरा सूत्र है, अपरिग्रह। सब छोड़ देना–घर, द्वार, धन-संपत्ति, वस्त्र भी-सब छोड़ देना। सब छोड़ने की इस अपरिग्रह भावना को बहुत जोरों से चिल्लाया गया कि महावीर अपरिग्रही हैं। यह वही गलती निरंतर चलती है। महावीर अपरिग्रही हैं, उन्होंने छोड़ा, इस बात में ही बुनियादी भूल हो गई। क्योंकि छोड़ वह समझ सकता है जो जानता हो कि यह मेरा है. छोडने के पीछे मेरे का भाव मौजद है। मैं कहं कि मैं यह चादर छोड़ता हूं, दो बातें तय हो गईं। पहली बात कि मैं मानता था कि चादर मेरी थी। मेरी थी तो छोड़ सकता हूं, जो मेरी नहीं थी उसे छोड़ कैसे सकता हूं। ____ महावीर छोड़ते नहीं, यह अनुभव करते हैं कि मेरा तो कुछ भी नहीं है। छोड़ने के पीछे, त्याग के पीछे तो अहंकार मौजूद होता है। मैं कहता हूं, यह मकान मैंने त्याग किया, यह मैंने मकान दान किया, यह धन मैं दान करता हूं। मैं तो मौजूद हूं। जहां मैं मौजूद है, वहां दान
147