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ही क्यों न हो। और जब तक मन में किसी को नग्न देखने की कामना हो तब तक नग्न देखना बिलकुल आसान है, चाहे वह वस्त्र ही क्यों न पहने हो। वस्त्र पहनने से किसी के नग्न सत्ता को देखने में कोई बाधा पड़ती है। कहीं वस्त्र किसी की नग्नता को रोक पाते हैं। बल्कि सच्चाई उलटी है, नग्न आदमी इतना नग्न कभी नहीं होता जितना वस्त्र पहन कर उसके शरीर की नग्नता प्रकट होने लगती है, जितना उघड़ कर शरीर प्रकट होने लगता है। वस्त्रों की ईजाद शरीर को छिपाने के लिए नहीं, उघाड़ कर प्रकट करने के लिए आदमी ने कर ली है।
__ अगर शरीर छिपाना हो तो कपड़े ढीले से ढीले होते चले जाएंगे। शरीर उघाड़ कर प्रकट करना हो तो कपड़े चुस्त से चुस्त होते चले जाएंगे। स्वभावतः! शरीर की नग्नता इतनी नग्न नहीं है जितनी वस्त्रों से प्रकट होकर नग्न और प्रखर और मुखर हो जाती है, बोलने लगती है। वस्त्रों ने आदमियों को, स्त्रियों को जितना नग्न किया है उतना किसी और चीज ने नहीं किया। नंगा आदमी इतना नंगा होता ही नहीं।
हो सकता है, तो बुद्ध ने कहा, कि मैं नहीं कह सकता। देख भी लेता तो पता लगाना मुश्किल था कि नग्न है कि वस्त्र पहने है, क्योंकि मेरे भीतर वह डिस्क्रिमिनेशन, वह पता लगाने का खयाल जा चुका। जब से नग्न देखने की आकांक्षा गई तब से वह भी चला गया। फिर यह भी हो सकता है कि मैं यह भी देख लेता-दिन की रोशनी होती, खाली बैठा होता, दिखाई पड़ जाता-तो भी यह पता लगाना बहुत मुश्किल था कि वह स्त्री है या पुरुष है।
क्योंकि बाहर स्त्री दिखाई पड़ती है, यह भीतर के पुरुष को मिली हुई चुनौती के कारण। वह जो भीतर पुरुष है, वह बाहर की स्त्री से आंदोलित होता है, तो बाहर की स्त्री दिखाई पड़ती है। वह जो बाहर पुरुष दिखाई पड़ता है, तो वह जो भीतर स्त्री है वह जब आतुर, आकांक्षित होती है, तब बाहर का पुरुष दिखाई पड़ता है। यह पोलैरिटी है, ये एक विद्युत के दो टुकड़े हैं। एक हिस्सा भीतर आंदोलित होता है, तो दूसरा बाहर दिखाई पड़ता है। वह दूसरा बाहर चालित होता है। उसमें मूवमेंट शुरू होते हैं।
तो बुद्ध ने कहा, बहुत मुश्किल है। तुम किसी और से पूछो मित्रो, जो खोज-बीन तुम करने निकले हो, मैं उसमें साथी-सहयोगी नहीं हो सकता हूं। मुझे क्षमा करो! लेकिन एक बात जरूर तुमसे कह सकता हूं कि तुम कब तक दूसरे को खोजते रहोगे? अपने को खोजने की कोई इच्छा नहीं है? छोड़ो भी! किसकी खोज में निकल पड़े हो! इतनी देर में तो अपने को ही खोज ले सकते हो। इतनी तन्मयता से खोज, इतनी पागल दौड़, इस अंधेरे जंगल में भागना, खोजना—किसी और को, एक वेश्या को, एक स्त्री को—इतनी खोज में तो तुम अपने को ही खोज ले सकते हो। और वेश्या को खोज कर क्या पा लोगे? इतना ही कि वह वेश्या व्यर्थ हो जाएगी और नई वेश्या खोजनी पड़ेगी। और उसको पाकर क्या पा लोगे? वह व्यर्थ हो जाएगी और नई वेश्या खोजनी पड़ेगी।
रोज हम यही कर रहे हैं। एक मकान खोजते हैं, वह व्यर्थ हो जाता है। फिर दूसरा खोजना पड़ता है। एक तिजोरी खोजते हैं, वह व्यर्थ हो जाती है खोजते ही, फिर दूसरी तिजोरी, बड़ी तिजोरी खोजनी पड़ती है। एक देश जीत लेते हैं, जीतते ही व्यर्थ हो जाता है, फिर बड़ा देश जीतना पड़ता है।
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