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तो प्रेम के रास्ते से चल कर तो कोई परमात्मा तक पहुंच सकता है, लेकिन अहिंसा के रास्ते से नहीं । यह तो पहली बात ध्यान लेने की है कि महावीर के इमेज में, महावीर की प्रतिमा
बुनियादी फर्क कर दिया। शब्द - शास्त्री बहुत कुशलता से फर्क कर सकते हैं, हमें हजारों साल तक पता न चले कि क्या फर्क हो गया ! क्या फर्क कर दिया उन्होंने, क्या व्याख्या कर दी उन्होंने, पता न चले।
महावीर की दूसरी मूलभूत धारणा है, जिसको शास्त्री, पंडित, व्याख्याकार ब्रह्मचर्य कहते हैं। वह महावीर का दूसरा बुनियादी तत्व है । ब्रह्मचर्य का उनके मन में अर्थ है अमैथुन, नॉन-सेक्सुअलिटी । अमैथुन उनका अर्थ है, कि महावीर किसी तरह के शरीर संबंध में, कामुक संबंध में नहीं बंधते हैं । स्त्री - त्याग, गृह - त्याग, समस्त शारीरिक संबंधों का त्याग, समस्त कामुकता का त्याग, यह उनका अर्थ है अमैथुन का।
यह फिर वही भूल, फिर वही बात, फिर वही नकार से चीजों को पकड़ना, निगेशन से चीजों को पकड़ना। महावीर किसी को छोड़ते नहीं हैं-न स्त्री को, न शरीर को, न कामुकता को, महावीर किसी चीज को उपलब्ध होते हैं। आत्म-ऐक्य को, ब्रह्म-भाव को सबके बीच स्वयं को अनुभव करने लगते हैं। तो जो स्वयं ही हो जाता है, उसके साथ मैथुन असंभव है। जब मैं ही हूं, सारा जीवन मेरा ही रूप है, जो आत्मा मेरे भीतर प्रवाहित हो रही है, वही दूसरे के भीतर भी प्रवाहित हो रही है । मैं ही हूं, जब यह भाव जीवन में प्रविष्ट होता है, तो भोग की संभावना समाप्त हो जाती है । भोग दूसरे का किया जा सकता है। सेक्स, काम का संबंध अन्य से हो सकता है, आत्म से नहीं, स्वयं से नहीं । उसके लिए पराए का होना जरूरी है, उसके लिए दूसरे का होना जरूरी है। पुरुष का होना जरूरी है, स्त्री का होना जरूरी है ।
लेकिन महावीर जब आत्म-ऐक्य को उपलब्ध होते हैं, न कोई स्त्री रह जाती है, न कोई पुरुष रह जाता है। वहां दो नहीं रह जाते, वहां दुई नहीं रह जाती।
बुद्ध एक जंगल में बैठे थे। उस पास की राजधानी के कुछ युवक एक वेश्या को पकड़ कर जंगल में ले आए। उन्होंने शराब पी ली है, नाच-गाना किया है। और वेश्या को सता रहे हैं, परेशान कर रहे हैं। उनको नशे में डूबा देख कर, जब वे ज्यादा नशा कर गए हैं, वेश्या भाग खड़ी हुई। जब उन्हें थोड़ा होश आया, तो उन्होंने खोजा कि वेश्या कहां गई ! तो उसे खोजने निकले। तो खोजने निकले, जंगल में बुद्ध एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं। चांदनी रात है, शायद वे किसी ब्रह्म-भाव में लीन होंगे। शायद वे न मालूम किस मैत्री की कामना में डूबे होंगे। न मालूम कौन सी शांति उनके भीतर प्रविष्ट हो रही होगी। उन लोगों ने जाकर बुद्ध को हिलाया और कहा, सुनते हैं जी! यहां से एक वेश्या, एक स्त्री तो भागी नहीं गई है ? नग्न थी, क्योंकि कपड़े तो हमने उससे छीन लिए थे। यहां आपने देखा तो नहीं, हम उसे खोजने निकले हैं।
बुद्ध कहने लगे, कौन निकला, कौन नहीं निकला, कहना कठिन है। क्योंकि मैं इतना शांत था, क्योंकि मैं इतना शून्य था, क्योंकि मैं इतना मौन था, कि कौन सी लहर बाहर आई और गई, मुझे बताना कठिन है। लेकिन यह भी हो सकता है कि मुझे दिखाई पड़ जाता कि कोई निकला, तो यह कहना मुश्किल था कि वह कपड़े पहने है कि नंगा है। क्योंकि जब तक किसी को नंगे देखने की कामना न हो तब तक किसी को नंगा देखना बहुत मुश्किल है, चाहे वह नंगा
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