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महावीर : परिचय और वाणी है कपडे दो, पीठ कहता है विश्राम चाहिए। आपकी समस्त इन्द्रियो ने आपसे वगावत कर रखा है। वे कहती हैं—यह दो, वह लाओ, नही तो तुम्हारी जिन्दगी बेकार है, अकारथ है, तुम वेकार जी रहे हो। इतने छोटे-से गरीर मे जब इतनी छोटीछोटी इन्द्रियाँ आपसे राजी नहीं हो पाती तो इस विराट गरीर से ब्रह्माड से-आप कैसे राजी हो पाएँगे? फिर, जब तक आपका ध्यान इन्द्रियो मे ही उलझा रहेगा तव तक वह उस विराट पर जायगा भी कैसे ? वह यही छुद्र मे अटका रह जायगा। महावीर कहते हैं-पहले इन्द्रियो को अपने से राजी करो। अनगन का यही अयं है कि पेट को अपने से राजी करो, तुम पेट से राजी मत हो जाओ। भली-भाँति जानो । कि पेट तुम्हारे लिए है, तुम पेट के लिए नहीं हो। (२५) अनगन का अर्थ यही हैं कि हम इन्द्रियो को ऊपर बुलाएँ, उनके साथ कभी नीचे नही जाएँ ।'