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महावीर परिचय और वाणी
गम पर । मुये कोई जरूरत नही । आश्चय तो यह दसकर होता है कि इन शतों के बावजूद महावीर चालीस वप जिए । व स्वस्थ रहे और आन द स जिए। भूख न
मार न डाला। नियति पर स्वय का छोड देने में वे दीन-हीन न हो गए। जावेपणा को हटा दन से मौत ही आ गई।
हमारी यह धारणा कि हम अपन को जिरा रह हैं, वेवल विक्षिप्तता है, हमारा यह पयाल कि जब तक हम नहीं मरत तब तक हम मर कम सक्त है, मात्र नासमझा है। बहुत कुछ हमारे हाथ के बाहर है । जो हमार हाय के बाहर है उसे हाथ के | भातर समयन से ही अहकार या जम हाता है । जो हमारे हाथ के बाहर है उसे हाय के बाहर ही ममयने से अहवार विसजित होता है।
(२०) महावीर न ता अपना भाजन पदा परत ये और न अपनी ओर स स्नान ही परत थे। वपा या पानी उन्हें जितना धुला रेता, धुला रेता । लकिन वडी मगे नगर वात ता यह है कि महावीर के शरीर स कभी पसाने की दुगध नही आती थी। जापन व भी सयाल किया कि सरडा पशु-पक्षी हैं जा कभी स्नान नहा करते ? उनक लिए वपा का पानी ही काफी है। उनके शरीर से दुगध नहीं आती। आदमी ही अवेरा जानवर है जो बहुत दुगध देता है, जिसे डियाडरण्ट की जरूरत पडती है । गज सुगध छिन्यो, सावुन स नहाओ, सब तरह क इतजाम क्रो तादि शरीर से गध न आए। महावीर न जा बहुत निक्ट थे वे यह देखकर बहुत चक्ति ये कि उनक शरार से दुगध नही थाती । असल में महावीर वसे हो जोते थे जैसे पण पलो जोते है । उहाँने प्रकृति पर, नियति पर, यपने को छोड दिया था। अनत सत्ता यी मीं पर अपन का पूर्णतया निछावर पर दिया था। असल म राजा होन स एक नई तरह की सुगध जीवन म पानी शुम्ब हो जाती है। जब हा प्रति पर अपन पो छाड देत है उमपी दी हुई सभी चीज, चाहे वह पसीन हा या दुगप स्वीकार पर रेत हैं तो एक अनूठी सुगध स जीवन भर गता है। सब दुगध प्रति व अस्वीकार की दुगध है, सब युरुपता नियति स अस्वीकार की बुरुपता है। स्वीकार ये साय ही एक अनूठा मौन्दय आ जाता है, एन धनूठा मुगध से जीयन भर जाता है। महावीर ने समस्त पर अपने को छोड़ दिया पा। जय वादल बरसे तव स्नान हो गया । स्नान परना तो सिफ प्रताप है। वात पुर इतनी है कि महावीर न छोड दिया है स्वय को नियति पर । व नियति स, समस्त रो माना गहन है-जावरना हो पर, राजी । पर राजी होना अहिंसा है। और इस राजी हान पे लिए हो उहनि मनतामा प्रायमिर सून या है क्योगि जब तप मापकी इद्रियां आपसे राजी नहीं है तव तर आप प्राति से राजी ग हागे?
भापती द्रिया ही आपम राजी नहीं है । पट कहता है भागादा, गरीर रहता