________________
एकादश अध्याय उणोदरी आदि शेप वाह्य तप ठाणे निमीयणे चेव, तहेव य तुयदृणे । उल्लघणपत्लघणे, इदियाण य जुजणे ॥
-उत्त० अ० २४, गा०२४ अनगन के बाद महावार न दूसरा वाह्य तप उणोदरी कहा है। उणोदरा का यथ है अपूण भोजन, अपूर्ण आहार । महावीर ने अनान के बाद उणोदरी को क्या रमा ? आम तौर से जा लाग अनान का अभ्यास परत है, वे पहले उणोदरी या अभ्यास करत हैं, व पहले आहार को कम करन की कोशिश करते हैं । जव यम आहार पी आदत हो जाती है तब वे अनान का प्रयोग शुरू करते है । यह विरपुल ही गलत है। महावीर ने जान-बूझकर पहर अनशन वहा और फिर उणादरी की चचा की। उणोदरी का अभ्यास आसान है रविन एप बार उणादरी का अभ्यास हो जाए तो उस अभ्यास के बाद अनसान या माई अय या प्रयोजन नहीं रह जाता।
उपादरी या अय बुर इतना ही हाता है कि पट जितना मांगे उस उतना नहा देना। इसलिए उणाटरी बहुत याटिन है । पाठिन इस लिहाज से है कि आपका पहले से यही पता नहीं दि म्वाभाविक भूरा वितनी है। इसलिए आपको पहले अपनी स्वाभाविप भूत खाजनी पटेगी। इमलिए अनशन को पहले रगा गया है। अनान आपरी स्वामाविर भूपर का साजने म सह्यागी होगा। तब आप विल पुल पूरी रहेंगे और भूम रहन का साल करगे, तब कुछ ही दिना म पाएंगे कि आपको आदत यो समूग गइ । यह अगली भूस न यो । अनाना महावीर पहर रिया तारिठा मूत मिट जाए अमगे मूग या पता चल जाए और रोओ रो भाजन गरिए पुपाराग। (जीव विमानी पहत हैं कि आदमी व भीतर एक जविय परीही हा आदत पीती एव पडी हाती है। स्वामाविरमा ता
-
-
१ सयमी पुष्प पा रहने मे, मटने म, सोने मे, उल्लघन प्रत्धन परने मे सपा इदियो प्रयोग में सदा दायरा पा नियत्रण परे ।
२ दूसरी भूग भादत सी होती है, यह मादत पोपड़ी से पारित होती है। ३ यायोरनिरा बनार । ४ हैबिट नाप ।
२०