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महावीर : परिचय जोर वाणी मे भर जाते हैं। लेकिन फ्रॉयड की नमल उतनी गहरी नहीं है जितनी महावीर की है । महावीर कहते ह कि आत्महत्या करनेवाला भी जीवेपणा ने ही पीड़ित रहता है।
(३) इसे थोडा समझना पडेगा । कभी आपने किनी ऐने आदमी को आत्महत्या करते देखा है जिसकी जीवेपणा नष्ट हो गई हो? नहीं । मैं किसी स्त्री को चाहना हूँ और जब वह नहीं मिलती तो मैं आत्महत्या के लिए तैयार हो जाता हूँ। अगर वह मुझे मिल जाय तो मै आत्महत्या न करें। मैं चाहता हूँ कि बडे नम्मान, यन और इज्जत के साथ जीऊँ। मेरी इज्जत चली जाती है, प्रतिष्ठा मिट जाती है, तो मैं आत्महत्या करने को तत्पर हो जाता हूँ। मेरी प्रतिप्टा वापन लोट आए तो मैं मौत के आखिरी किनारे से वापस लौट सकता हूँ। महावीर कहते है कि यह मृत्यु की आकाक्षा नहीं हे, जीवन का प्रवल आग्रह है कि मैं इस टग ने जीऊँ। मगर यह ढग मुझे नही मिलता तो मैं मर जाऊँगा । मैं इन न्नी, इस धन, म भवन, इस पद के साथ ही जीऊँगा, अन्यथा नहीं । जीने की आकाक्षा ने एक दिगिप्ट आग्रह पकड लिया है । ___महावीर इस जगत् मे अकेले चिन्तक हे जिन्होने कहा कि मैं तुम्हे मरने की नी आज्ञा दूंगा, अगर तुममे जीवेपणा विलकुल न हो ।
(४) महावीर ने सथारा की आज्ञा दी। उन्होने कहा कि किसी व्यक्ति में अगर जीवन की आकांक्षा शून्य हो गई हो, तो वह मृत्यु मे प्रवेग कर सकता है । लेकिन पहले वह भोजन और पानी छोड दे---भोजन और पानी छोडकर भी आदमी ९० दिन तक नही मरता। जितनी भी आत्महत्याएं की जाती है, वे क्षण के आवेश मे की जाती है। क्षण खो जाय तो आत्महत्या नही हो सकती।
महावीर ध्यानपूर्वक मर जाने की आज्ञा देते है और कहते है कि भोजन-पानी छोड देना ९० दिन । अगर उस आदमी मे थोडी भी जीवेपणा होगी तो वह भाग खडा होगा। अगर जीवेषणा बिलकुल न होगी तो वह ९० दिन रुक सकेगा। फ्रॉयड को माननेवाले मनोवैज्ञानिक कहेगे कि महावीर मे कही-न-कही आत्महत्यावाले तत्त्व अवश्य थे। लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि बात ऐमी नही है। असल मे जिस व्यक्ति मे जीवेषणा नही है, उसमे मरने की भी एपणा न होगी। मृत्यु की एपणा जीवेपणा का दूसरा पहलू है ( विरोधी नही, उसी का अग है ) । इसलिए महावीर ने मृत्यु की कोई चेष्टा नही की। महावीर के अनुसार मथारा का अर्थ आत्महत्या नहीं, बल्कि जीवेपणा का इतना खो जाना है कि पता ही न चले और व्यक्ति शून्य मे लीन हो जाय । आत्महत्या की इच्छा नही, क्योकि जहाँ तक इच्छा है, वहाँ तक जीवन की भी इच्छा होगी। मृत्यु की इच्छा मे ही जीवन की इच्छा भी छिपी होती है। महावीर कोई आत्मघाती नहीं हैं, ससार के सबसे बडे आत्मज्ञानी है।
(५) लेकिन यह वात जरूर है कि अनेक आत्मघाती उनके विचार मे उत्सुक हुए