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महावीर : परिचय और वाणी
सुख पा रहा है, वह धन-धान्य से भरा-पूरा है । अगर अच्छे कार्य तत्काल फल लाते हैं तो अच्छे आदमी को सुख भोगना चाहिए और यदि बुरे कार्यों का परिणाम तत्काल बुरा होता है तो बुरे आदमी को दुख भोगना चाहिए। परन्तु ऐसा कम होता है ।
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जिन्होने इसे समझने-समझाने की कोशिश की उन्हें मानो एक ही रास्ता मिला । उन्होने पूर्व जन्म में किए गए पुण्य-पाप के सहारे इस जीवन के सुख-दुख को जोड़ने की गलती की और कहा कि अगर अच्छा आदमी दुख भोगता है तो वह अपने पिछले बुरे कार्यों के कारण और अगर कोई बुरा आदमी सुख भोगता है तो अपने पिछले अच्छे कर्मों के कारण | लेकिन इस समस्या को सुलझाने के दूसरे उपाय भी थे और असल मे दूसरे उपाय ही सच है । पिछले जन्मो के अच्छे-बुरे कर्मों के द्वारा इस जीवन के सुख-दुख की व्याख्या करना कर्मवाद के सिद्धान्त को विकृत करना है । सच पूछिए तो ऐसी ही व्याख्या के कारण कर्मवाद की उपादेयता नष्ट हो गई है । कर्मवाद की उपादेयता इस बात मे है कि वह कहता है तुम जो कर रहे हो, वही तुम भोग रहे हो। इसलिए तुम ऐसा करो कि सुख भोग सको, आनन्द पा सको । अगर तुम क्रोध करोगे तो दुख भोगोगे, भोग हो रहे हो क्रोध के पीछे ही दुख भी आ रहा है छाया की तरह । अगर प्रेम करोगे, शान्ति से रहोगे और दूसरो को शान्ति दोगे तो शान्ति अर्जित करोगे : यही थी उपयोगिता कर्मवाद की । किन्तु इसकी गलत व्याख्या की गई। कहा गया कि इस जन्म के पुण्य का फल अगले जन्म मे मिलेगा, यदि दुख है तो इसका कारण पिछले जन्म मे किया गया कोई पाप होगा । ऐसी बातों का चित्त पर बहुत गहरा प्रभाव नहीं पड़ता । वस्तुत. कोई भी व्यक्ति इतने दूरगामी चित्त का नही होता कि वह अभी कर्म करे और अगले जन्म मे मिलनेवाले फल से चिन्तित हो । अगला जन्म अँधेरे मे खो जाता है । अगले जन्म का क्या भरोसा ? पहले तो यही पक्का नही कि अगला जन्म होगा या नही फिर, यह भी पक्का नही कि जो कर्म अभी फल दे सकने मे असमर्थ है, वह अगले जन्म मे देगा ही । अगर एक जन्म तक कुछ कर्मों के फल रोके जा सकते है तो अनेक जन्मो तक क्यो नही ? तीसरी बात यह है कि मनुष्य का चित्त तत्कालजीवी है । वह कहता है : ठीक है, अगले जन्म मे जो होगा, होगा; अभी जो हो रहा है, करने दो। अभी मैं क्यो चिन्ता करूँ अगले जन्म की ?
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इस प्रकार कर्मवाद की जो उपयोगिता थी, वह नष्ट हो गई। जो सत्य था, वह भी नष्ट हो गया । सत्य है कार्य-कारण सिद्धान्त जिस पर विज्ञान खडा हे अगर कार्य-कारण के सिद्धान्त को हटा दो तो विज्ञान का सारा भवन धराशायी हो जाय ।
ह्यूम नामक दार्शनिक ने इंगलैंड मे और चार्वाक ने भारतवर्ष मे कार्य-कारण के सिद्धान्त को गलत सिद्ध करना चाहा। अगर ह्यूम जीत जाता तो विज्ञान का जन्म