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ज्यों था त्यों ठहराया
मैं तो बड़ा हैरान हुआ। मैंने कहा कि मैं कुछ समझा नहीं यह चटाई का राज। गद्दी काफी सुखद है, अब और इस पर चटाई किसलिए रखनी ?
उन्होंने कहा, हम तो चटाई पर ही बैठते हैं। हमें गद्दी से क्या लेना-देना !
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इंपाला कार की गद्दी पर बैठे हुए हैं, मगर बीच में चटाई ! वे अपनी चटाई पर बैठे हुए हैं!
मैंने कहा, तुम्हारी चटाई आकाश में उड़ रही है? यह इंपाला कार चल रही है कि तुम्हारी चटाई चल रही है?
उन्होंने कहा, हमें क्या मतलब!
मैं आचार्य तुलसी के एक अणुव्रत सम्मेलन में बोला, तो उनको बड़ी अड़चन हुई अड़चन यह हुई कि कोई बीस हजार लोग इकट्ठे हुए थे वे सब मेरी बात सुन सके, समझ सके। वे खुद बोले, तो बिना माइक के बोले। तो कितने लोग समझें ! सौ दो सौ लोग सुन पाए। इसका कोई परिणाम नहीं हुआ। दूसरे दिन देखा कि माइक लग गया। मैंने उनसे पूछा कि जैन मुनि तो माइक का उपयोग नहीं करते, क्योंकि जैन शास्त्रों में उल्लेख नहीं है। हो भी कैसे ? माइक था भी नहीं उन दिनों । तो आप माइक का उपयोग कैसे कर रहे हैं? उन्होंने कहा, मैं उपयोग नहीं कर रहा। मैं तो बोल रहा हूं। अब किसी ने माइक ला कर रख दिया, तो मैं क्या करूं !
और तब से बीस साल हो गए, आचार्य तुलसी क्या करें ये तो कहते किसी से कि माइक रखो, अब क्या दोहरे झूठ चलते हैं। यह उनके ही इशारे पर माइक रखा गया है। इसके पहले क्यों नहीं रखा गया था? उस दिन जो उन्होंने देखा कि उनकी बात का कोई परिणाम नहीं हुआ, तो उनको धक्का लगा। अहंकार को चोट लग गई। तो उस दिन से माइक रखा जाने लगा। इशारा उन्होंने ही किया होगा -मगर पीछे के दरवाजे से ।
कोई न कोई माइक ला कर रख देता है-- रोज ! अब बेचारे अपना बोल रहे हैं; उनको तो अपना बोलना है। वे नहीं कि न रखो।
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तो मैंने कहा, ठीक है। अगर कोई माइक उठा ले - फिर ? उन्होंने कहा, मतलब !
मैंने कहा, कल मैं माइक उठा कर बता दूंगा।
उस दिन से जो मेरी उनसे खटपट हो गई, वह चलती है। मैंने माइक उठाया नहीं; सिर्फ कहा था कि कल मैं उठा कर बता दूंगा। मगर तब से उनके मन में एक दुश्मनी छिड़ गई। क्योंकि उनका ही
मुझे लेने जो आने अब यह भी इशारा कहा नहीं था। यह
दूसरे दिन तो मेरा जो प्रवचन होना था, वह उन्होंने रद्द ही कर दिया। सम्मेलन था। प्रवचन ही रद्द नहीं किया कि कहीं मैं माइक न उठा लूं, वाले थे, जहां मुझे ठहराया गया था वे लेने ही नहीं आए वक्त पर किया होगा क्योंकि यह मैंने निजी तौर से कहा था, किसी और से तो कैसे प्रवचन रद्द हुआ? मुझे कोई लेने नहीं आया -- यह कैसे हुआ ? और मैंने उनसे कहा कि कोई आ कर आप खाना खा रहे हैं और गौ-माता का गोबर रख दे, तो आप खा लेंगे कि मैं क्या करूं अब क्या बातें करते हैं!
इसने थाली में परोस दिया
तो वे कहने लगे,
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