________________
ज्यों था त्यों ठहराया
पहली राजधानी अंग्रेजों ने कलकत्ता में बनाई और बंगालियों से पाला पड़ा। और बंगालियों में बास आती है--आएगी ही। मछली खाओगे, तो बास नहीं आएगी, तो क्या होगा! झर-झर के रोएं-रोएं से मछली की गंध उठेगी। तो अंग्रेजों को बास आने के कारण उन्होंने यह शब्द खोजवाया कि इनको नाम क्या देना-- बा-बू--बू-सहित! और क्या मजा है! जो गाली की तरह उपयोग किया, वह सम्मान बन गया! जब सत्ताधिकारी गाली भी देते हैं, तो वह सम्मानजनक हो जाता है। क्योंकि बाबू वे उन्हीं को कहते थे, जो उनके पास थे। पास थे मतलब--ऊंचे पदों पर थे। गवर्नर के पास जो था, वह गवर्नर की कौंसिल का सदस्य था। तो बाबू सम्मानित शब्द हो गया। बाबू कोई ही हो सकता था; सभी नहीं हो सकते थे। कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर--ये बाबू थे। तो फिर सम्मान का शब्द हो गया। फिर हम जिनको भी सम्मान देना चाहते हैं, उनको कहते हैं--बाबू--बाबू जगजीवन राम! उनको भी शरम नहीं आती कि कह दें कि क्या गाली दे रहे हो! शायद पता भी न हो। जग्गू भैया--बेहतर! बाबू राजेंद्रप्रसाद! नाम के पहले ही गाली लगी है! रामकृष्ण तो मछली खाते थे। अब मछली खाने को अच्छा काम कहोगे कि बुरा? विवेकानंद भी मछली खाते थे। कश्मीर के ब्राह्मण भी मांसाहारी हैं। इसलिए तो नेहरू मांसाहारी हैं। क्योंकि वे कश्मीरी ब्राह्मण। किसको अच्छा कहते हो। क्या कसौटी है अच्छे की? बाहर के जगत में कोई कसौटी नहीं है। कसौटी तो सिर्फ एक है और वह ध्यान है। तुम जब ध्यान को उपलब्ध होओ, तो तुम्हें पता चलता है: क्या मेरे लिए ठीक है, और क्या मेरे लिए गलत। और जो तुम्हारे लिए ठीक है, जरूरी नहीं सबके लिए ठीक हो। और जो तुम्हारे लिए गलत है--जरूरी नहीं, सबके लिए गलत हो। जो तुम्हारे लिए अमृत है, वह किसी के लिए जहर हो सकता है। और जो तुम्हारे लिए जहर है, वह किसी के लिए औषधि हो सकती है। लेकिन यह व्यक्तिगत निर्णय होगा। इसकी कोई सामूहिक धारणा नहीं हो सकती। मगर हर मां-बाप अपने बच्चों के ऊपर, रजनीकांत! थोप देता है कि यह अच्छा काम है। इसको करो। जो उसकी धारणा है अच्छे काम की। इसका कुल परिणाम इतना होता है कि वह अच्छे काम करे या न करे...। क्योंकि हो सकता है, वह अच्छा काम उसको रुचे ही न। वह उसको प्रीतिकर ही न पड़े। लेकिन इसका एक परिणाम जरूर होगा--और वह यह होगा कि वह पाखंडी हो जाएगा। ऊपर-ऊपर से दिखाएगा अच्छा काम कर रहा है, और भीतरभीतर से जो उसे करना है, वह करेगा। इसलिए उसके दोहरे चेहरे हो जाएंगे। उसकी जिंदगी दो खंडों में बंट जाएगी। मैं एक जैन ब्रह्मचारी के साथ यात्रा को निकला। बड़ी इंपाला कार! और जब जैन ब्रह्मचारी उसमें आ कर बैठे, तो उनके पहले उनके शिष्य ने इंपाला गाड़ी की गद्दी पर चटाई ला कर रख दी! फिर उस पर चटाई पर ब्रह्मचारी जी विराजमान हो गए।
Page 76 of 255
http://www.oshoworld.com