________________
ज्यों था त्यों ठहराया
रास्ता भूल न जाऊं कहीं मैखाने का अब तो हर शाम गुजरती है उसी कूचे में ए नतीजा हुआ नासेह तेरे समझाने का मंजिले कम से तो गुजरना है आसां एक बार इश्क है नाम अपने से गुजर जाने का वीणा! तू अपना स्वर सुनाती रही, इसी से चूकती रही। जो भी यहां अपना स्वर सुनाने में लगा है, वह चूकता चला जाएगा। मंजिले गम से तो गुजरना है आसां एक बार।...दुख की मंजिल से गुजरना इतना कठिन नहीं। दुख की मंजिल से तो गुजरते ही रहे हैं। जन्मों-जन्मों गुजरते रहे हैं। उसके तो हम आदी हैं, परिचित हैं। मंजिले गम से तो गुजरना है आसां एक बार इश्क है नाम अपने से गुजर जाने का जो अपने से पार हो जाता है, जो अपने के पार हो जाता है, मैं के पार हो जाता है, जो मैं के पार हो जाता है, मैं से आगे निकल जाता है...। मैं पर अटके हैं हम, तो फिर पहचान न हो पाएगी। मैं के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। परवाने का नाच देख शम्मा के पास! कौन समझदार राजी होगा। परवाने को पागल ही कहोगे। मरने चला है! मिटने चला है! शम्मा के पास जा कर मिलेगा क्या?--मौत मिलेगी। पुराने शास्त्रों में सूत्र है, आचार्यो मृत्युः। गुरु के पास जा कर क्या मिलेगा? मौत मिलेगी। क्योंकि गुरु मृत्यु है। उसके पास अहंकार मरेगा। और अभी तो तुम यही जानते हो कि तुम यानी अहंकार। अहंकार मरते-मरते तक बचने की कोशिश करता है। कोई तरह की तरकीबों खोजता है। आनंद किरण ने यह प्रश्न पूछा है। इसमें देखो, तरकीब कहां से आ गई। किरण को पता भी न होगा कि तरकीब इसमें आ गई। प्रश्न बड़ा प्यार है, भाव भरा है लेकिन कहीं पीछे से स्वर आ गया। ये गर्वभरा मस्तक मेरा प्रभु, चरण-धूल तक झुकने दे झुकने का भाव है, प्यार है। मगर मस्तक मेरा है! ये गर्वभरा मस्तक मेरा प्रभु चरण-धूल तक झुकने दे मैं ज्ञान की बातों में खोया
और कर्महीन पड़ कर सोया जब आंख खुली तो मन रोया जग सोए, मुझको जगने दे मैं मन के मैल को धो न सका ये जीवन तेरा हो न सका
Page 61 of 255
http://www.oshoworld.com