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ज्यों था त्यों ठहराया
जो बिना सोचे आया है, उसका तो दीदार निश्चित है। उसने तो दर्शन पा ही लिया। निर्विचार में ही तो दर्शन है। खींच मुझे इतनी दूरी से लाया बरबस कौन! यही तो आने का ढंग है कि पता भी नहीं चलता कि क्यों हम आए; किसलिए हम आए; कौन खींच लाया! कोई अदम्य आकर्षण, कोई भीतर की डोर, जो दिखाई नहीं पड़ती--अदृश्य--कोई किरण छू ली है--और तू चल पड़ी। कोई धुन उठी और तू चल पड़ी। यहां तो मतवाले ही पहुंच पाते हैं, दीवाने ही पहुंच पाते हैं। जिस तरफ देखा दीवानगी में तेरे दीवाने गए लाख अपने को छुपाया फिर भी पहचाने गए अल्ला अल्ला कितनी पेचीदा हैं राहें इश्क की खुद को खो बैठे वो रहरौ जो भी थे पाने गए
बज्म में नीची नजर ने राजे उल्फत कह दिया हम तो रुसबा हो रहे थे तुम भी पहचाने गए दर हकीकत अपना इल्फां है तुम्हारी मारफत खुद को जब पहचाना हमने तुम भी पहचाने गए
इससे बढ़कर और क्या हो कम निगाही की दलील उम्र भर पर तुम साथ रह कर भी न पहचाने गए आशिकी उनकी है वाकफ हौसलेवालों का काम अरे आप उस कूचे में नाहक ठोकरें खाने गए जिस तरफ देखा दीवानगी में तेरे दीवाने गए लाख अपने को छपाया फिर भी पहचाने गए
तू कहती है, यहीं कहीं बैलूंगी छिपकर! कितना ही छपकर बैठ...।
जिस तरफ देखा दीवानगी में तेरे दीवाने गए लाख अपने को छपाया फिर भी पहचाने गए अल्ला अल्ला कितनी पेचीदा हैं राहें इश्क की खुद को खो बैठे वो रहरो जो भी थे पाने गए पाने का ढंग एक ही है--खुद को खो बैठना। खुद को खो बैठे--तो फिर पाने में देर नहीं। उतना साहस! और वीणा तुझमें उतना साहस मैं देखता हूं। तू कहती है: यहीं कहीं बैलूंगी छिप पर आएंगे देखूगी पल-भर बस लौटूंगी उस पल का हृदय-पट पर चित्र उतार!
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