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तह पुण्णचरित्तो वि हु, कुसीलसंसग्निमाईहिं ।।
अर्थात् जैसे प्रतिपूर्ण चंद्रमा भी प्रतिदिन हीन होते-होते सर्वथा नष्ट हो जाता है, वैसे ही चरित्र से प्रतिपूर्ण मुनि भी कुशील-संसर्ग आदि कारणों से नष्ट हो जाता है।'
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भगवती आराधना में कहा गया है कि तरुणों की संगति से वृद्ध पुरुष भी मोह युक्त हो जाता है। सूत्रकार के अनुसार जो तरुणों की संगति में रहता है उसकी इंद्रियां चंचल होती हैं, मन चंचल होता है और पूरा विश्वासी होता है। फलतः शीघ्र ही स्वच्छंद होकर स्त्री विषयक दोषों का भागी होता है।"
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शब्द श्रवण - आचारांग एवं ठाणं दोनों सूत्रों में मैथुन से संबंधित बातों को सुनने को वासना की उद्दीप्ति का कारण माना है। ° भगवती आराधना के अनुसार जैसे मद्य पी कर, मद्यपान के विषय में सुनकर, मद्यपान की अभिलाषा उत्पन्न होती है वैसे ही मोही मनुष्य विषयों के बारे में सुनकर विषयों की अभिलाषा करता है।
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3.3
रूप दर्शन - आचारांग सूत्र में काम की उत्पत्ति का कारण रूप दर्शन को भी माना
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गया है। 2 सौंदर्य को देखकर आसक्त हो जाने का वर्णन कथा साहित्य में भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। ज्ञाताधर्मकथा में कुमारी मल्लि को पाने के लिए आक्रमण करने वाले छह राजाओं में एक मल्लि के चित्र को देखकर उस पर मोहित हो गया था।"
भगवती आराधना में काम सेवन की अभिलाषा की उत्पत्ति का एक कारण स्त्री पुरुष के काम सेवन को प्रत्यक्ष देखना भी माना गया है।
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3.4
आहार - कामवासना की उत्पत्ति का आहार के साथ गहरा संबंध है। आचारांग सूत्र में आहार को भी इसका एक कारण स्वीकार किया गया है।'
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3.5
शरीर - आचारांग सूत्र में शरीर को काम-वासना का एक कारण माना गया है।" ठाणं सूत्र में इसे और स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि अत्यधिक मांस-शोणित के उपचय हो जाने से मैथुन संज्ञा ( काम वासना) की उत्पत्ति होती है।” आधुनिक शरीर विज्ञान भी उम्र के विकास के साथ होने वाले रासायनिक परिवर्तन को कामोत्पत्ति का कारण मानता है।
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3.6
पूर्व भुक्त भोगों की स्मृति - आचारांग सूत्र में पूर्व में भुक्त भोगों की स्मृति को काम वासना की उत्पत्ति का कारण माना गया है।'
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3.7
काम अध्यवसाय ठाणं सूत्र में मैथुन के सतत चिंतन को काम-वासना का हेतु माना है।” दसवैकालिक सूत्र में भी काम की उत्पत्ति संकल्प ( काम अध्यवसाय) के द्वारा बताई गई है। संकल्प और काम का संबंध बताते हुए चूर्णिकार अगस्त्यसिंह ने इस श्लोक को उद्धृत किया है।
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