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1. भारतीय आर्यों की वह अवस्था तथा व्रत जिसमें विद्यार्थी विशेषत: ब्राह्मण विद्यार्थी को वेदों का अध्ययन करना पड़ता है, सब प्रकार के सांसारिक बन्धनों से दूर रहकर सात्विक जीवन बिताना पड़ता है और अपने वीर्य को अक्षुण्ण रखना पड़ता है।
2. अष्ट विध मैथुनों से बचने का व्रत ।
3. योग में एक प्रकार का यम वीर्य को रक्षित रखने का प्रतिबंध मैथुन से बचने की
साधना ।
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6. Dictionary of Buddhism के अनुसार पवित्र जीवन, चरम लक्ष्य से प्रकाशित भिक्षु का जीवन, बुद्ध का अनुगमन, पंचशील के अतिरिक्त वासनात्मक दुराचरण को त्याग कर पूर्ण पवित्रता रखना, ब्रह्मचर्य है।
Brahma Chariya in Budha, Usage this term denotes tholy living' i.e.life of the monk, With enlightenment as ultimate goal. It can be applied also to be religious, life of the lay Buddha; who undertakes to observe not the 5 moral Precepts (Panchasila) only, but the additional three and Undertakes to refrain from Sexual misconduct inlien of view of Complete Chastity.
2.4 परिभाषाएं
ब्रह्मचर्य की अनेक परिभाषाएं आचार्यों ने दी हैं। कुछ का उपस्थापन, विवेचन यहां किया जा रहा है -
1. पद्मनन्दि पंचविशतिका
आत्मा ब्रह्म विविक्तबोधनिलया यत्तत्र ब्रह्मचर्य परः ।
स्वांगासंग विवर्जितक मनसस्तद् ब्रह्मचर्यं मुने 1112 / 211
अर्थात् ब्रह्म शब्द का अर्थ निर्मल ज्ञान स्वरूप आत्मा है, उसमें लीन (तन्मय) होना ब्रह्मचर्य है। जिस मुनि का मन अपने शरीर के संबंध में निर्ममत्व हो चुका है, उसी के ब्रह्मचर्य होता है।
2. भगवती आराधना
जीवो भो, जीवम्मि चेव चरिया हविज्ज जा जदिणो । तं जाण बंगचेरं विमुकपरदेहतित्तिस्स ।। सू. 8721
जीव ब्रह्म है, जीव में ही जो पर देह सेवन रहित चर्या होती है उसे ब्रह्मचर्य समझो। 3. भारतीय संस्कृति का विकास (प्र. ख.) पृ. 228 (ले. श्री मंगल देव शास्त्री) ‘“सर्वेषामति भूतानां यत्तत्कारणमव्ययम् । कुटस्थं, शाश्वतं दिव्यं, वेदो वा ज्ञानमेव यत् । तदेतदुभयं ब्रह्म ब्रह्मशब्देन कथ्यते । तदुद्दिश्य व्रतं यस्य ब्रह्मचारी स उच्यते । " अर्थात् “समस्त पदार्थों का जो अक्षय, कुटस्थ, शाश्वत एवं दिव्य मूल कारण है, वह "ब्रह्म" है
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