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तीन अर्थ है- वीर्य रक्षण, आत्म रमण और विद्याध्ययन।"
ब्रह्म के वैदिक और जैन परम्पराओं में दो अर्थ विशेष प्रचलित हैं आत्मा और परमात्मा। ब्रह्म का तीसरा अर्थ, जो वैदिक परम्परा में विशेष प्रचलित है। वह है - अध्ययन (विद्याऽध्ययन) या वेद का अध्ययन।
ब्रह्म का चौथा व्युत्पत्यर्थ होता है - बृहद् विराट या महान।
चर्य का अर्थ होता है- विचरण करना, रमण करना, चलना या गति करना, चर्या करना, अध्ययन करना या अनुष्ठान करना ।
इस प्रकार ब्रह्मचर्य का पूर्ण अर्थ हुआ - आत्मा में रमण करना अथवा परमात्मा (परमात्मभाव) में विचरण करना अथवा विद्याध्ययन या वेदाध्ययन में विचरण करना अथवा वेदाध्ययन का आचरणीय कर्म ब्रह्मचर्य है। अथवा बृहत् या महान में विचरण करना, विराट में रमण करना भी ब्रह्मचर्य है। 2.3 कोशगत अर्थ
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ब्रह्मचर्य शब्द का विविध कोशों में भिन्न भिन्न अर्थ प्रस्तुत किया गया है। आप्टे के अनुसार ब्रह्मचर्य शब्द के अर्थ इस प्रकार हैं
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1. धार्मिक शिष्य वृत्ति, वेदाध्ययन के समय ब्राह्मण बालक का ब्रह्मचर्य जीवन, जीवन का प्रथम आश्रम, 2. धार्मिक अध्ययन, आत्मसंयम 3 कौमार्य, 4. सतीत्व, विरति इन्द्रिय निग्रह, 5. अध्यात्म विद्या
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2. पाइअसद्दमहण्णवो में ब्रह्मचर्य के दो अर्थ किए गए हैं। " (1) मैथुन विरति (2) जिनेन्द्र शासन, जिन प्रवचन ।
अमर कोश के कोशकार ने ब्रह्मचर्य के दो अर्थ किए हैं। एक तो चार आश्रमों में प्रथम आश्रम ‘“ब्रह्मचर्याश्रम’’ ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थे भिक्षुश्चतुष्टये आश्रमोऽस्त्री और दूसरा वेद को ब्रह्म मानते हुए इनके अध्ययन के लिए किए गए संकल्प को ब्रह्मचर्य कहा गया है
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ब्रह्मवेदः। तदध्ययनार्थ व्रतमप्युपचाराद् ब्रह्म । ब्रह्म चरितु शीलमस्य ।
4. A Sanskrit English Dictionary में ब्रह्मचर्य को इस प्रकार दर्शाया गया है - Study of the Veda, the state of an unmarried religious student, a State of Continuance and Chastity.
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5. शब्द कल्पद्रुम में राजाराधाकान्त देव ने ब्रह्मचर्य का एक अर्थ आश्रम विशेष और दूसरा पातञ्जल योगसूत्र के यम का एक भेद बताया है। '
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6. मानक हिन्दी कोश में श्री रामचन्द्र वर्मा ने ब्रह्मचर्य की व्याख्या इस प्रकार की है।
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