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अशक्य व्यक्ति को प्रव्रज्या के अयोग्य घोषित किया गया है।'
उपासकदशांग सूत्र में भगवान महावीर के दस प्रमुख श्रावकों के जीवन का वर्णन किया गया है। आनन्द आदि श्रावकों के त्याग-प्रत्याख्यान, साधना एवं उपसर्ग आदि के वर्णन में ब्रह्मचर्य को विशेष महत्त्व दिया गया है। उदाहरणार्थ पौषधोपवास व्रत के नियमों के अन्तर्गत समस्त सावद्य प्रवृत्तियों के त्याग में ब्रह्मचर्य समाहित है फिर भी ब्रह्मचर्य को महत्त्व देने के लिए पृथक उल्लेख भी किया गया है।"
एक श्रमणोपासक को लोकोत्तर साधना के साथ-साथ लौकिक जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करना होता है। इस कार्य में बधा दिव्य शक्तियों की सहायता भी लेनी होती हैं। उन दिव्य शक्तियों के आह्वान के लिए मानसिक स्थिरता व पवित्रता की अति आवश्यकता होती है। उपासकदशा सूत्र में मेघकुमार के प्रसंग में यह पता चलता है कि मानसिक स्थिरता एवं पवित्रता के लिए ब्रह्मचर्य को एक आवश्यक अर्हता मानी गई है। इससे देव आह्वान के लिए ब्रह्मचर्य का महत्त्व उजागर होता है।"
प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को सभी व्रतों, नियमों, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूलाधार बताया गया है, क्योंकि इसके खण्डित होने पर सभी व्रतों का खण्डन हो जाता है और इसके पूर्णरूपेण पालन से ही अन्य व्रतों का पालन सम्भव है। ब्रह्मचर्य को किसी विशाल वृक्ष के स्कन्ध के समान माना गया है। जिस प्रकार विशाल वृक्ष की शाखाएं, प्रशाखाएं, टहनियां, पत्ते, पुष्प, फल आदि का आधार स्कन्ध होता है उसी प्रकार समस्त धर्मों का आधार ब्रह्मचर्य है।
__व्रतों को रत्नों की तरह बहुमूल्य माना जाता है। इसलिए उनकी सुरक्षा की व्यवस्था भी की जाती है। व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत का महत्त्व इससे भी सिद्ध होता है कि सभी व्रतों की अपेक्षा सर्वाधिक सुरक्षा व्यवस्था ब्रह्मचर्य की ही की गई है। इतना ही नहीं, इस ग्रंथ में भगवान महावीर की दृष्टि में ब्रह्मचर्य का महत्त्व इससे भी प्रतीत होता है कि उन्होंने ब्रह्मचर्य को भगवान तक की उपमा दे दी है- बंभं भगवंतं"।
तप, जप आदि साधना के प्रयोगों द्वारा कईं साधक तेजस्विता अर्जित कर लेते हैं। जिसके प्रभाव से देवता भी उनकी पूजा-अर्चना करने लग जाते हैं। ऐसे महापुरुष के लिए भी ब्रह्मचर्य पूजनीय है अर्थात् इसकी साधना उनके लिए भी आवश्यक है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को सभी पवित्र अनुष्ठानों को सारयुक्त बनाने वाला कह कर सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ब्रह्मचर्य के रहने पर ही दूसरे अनुष्ठान लाभप्रद हैं अन्यथा निस्सार हैं। 1
वहां यह बताया गया है कि ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से मनुष्य उत्तम