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है। इस स्थिति को इसी ग्रन्थ में सियार वृत्ति' से उपमित किया गया है।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में पूर्व भुक्त भोगों का विस्तृत वर्णन करते हुए अन्य सभी प्रकार के विषय जो तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात-उपघात करने वाले हैं का स्मरण निषेध किया है। 152 दसवैकालिक सूत्र में भी भुक्त भोग का स्मरण निषेध है। 2.9. शब्दादि इन्द्रिय विषय एवं श्लाघा का अनुपाती (आसक्त) न होना
यद्यपि प्रत्येक ब्रह्मचर्य गुप्ति का लगभग प्रत्यक्ष संबंध इन्द्रिय विषयों एवं मन से ही है। फिर भी इन्द्रिय विषयों एवं मन का ब्रह्मचर्य के साथ सीधा संबंध होने से इसे एक पृथक गुप्ति के रूप में भी रखा गया है।
स्थानांग सूत्र में केवल दो इन्द्रिय विषयों के नाम मिलते हैं - शब्द और रूप। समवायांग एवं उत्तराध्ययन की गुप्तियों में पांचों विषयों का पृथक-पृथक नाम है। ब्रह्मचर्य साधक के लिए श्लोक-कीर्ति, प्रशंसा, यश, श्लाघा की आसक्ति पतन कारक होती है। यह एक अनुकूल परीषह है। अनुकूलता को सहना प्रतिकूलता से अधिक कठिन होता है। इसकी स्निग्धता में फिसलने से विरले ही बच पाते हैं। ठाणं एवं समवायांग सूत्र में इन्द्रिय विषयों की आसक्ति के साथ-साथ श्लाघा की आसक्ति का भी निषेध है। 156
इन गुप्ति पदों के अतिरिक्त भी इन्द्रिय विषयों की आसक्ति का निषेध जैन आगमों में स्थान-स्थान पर मिलता है।
आचारांग के भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ इन्द्रिय संयम का अर्थ आत्मानुशासन और लज्जा करते हैं। स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं - आत्मानुशासित और लज्जावान व्यक्ति एकान्त में भी अनाचरणीय का सेवन नहीं करता, इन्द्रियों का उच्छृखल व्यवहार नहीं करता है। इस ग्रन्थ में इन्द्रिय संयम के और भी सूत्र मिलते हैं, जैसे
विराग रूवेहिं गच्छेज्जा, महया खुडुएहि वा। पुरुष क्षुद्र या महान- सभी प्रकार के रूपों के प्रति वैराग्य धारण करे। उदाह वीरे - अप्पमादो महामोहे 15 महावीर ने कहा- साधक विषय - विकार में प्रमत्त न हो।
मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए। 100 सूत्रकृतांग सूत्र में भी इन्द्रिय विषयों की आसक्ति का वर्जन करते हुए इनकी इच्छा करने का भी निषेध किया गया है। इस सूत्र में काम भोगों (इन्द्रिय विषयों) को अकल्याणकारी एवं भय उत्पन्न करने वाले बताते हुए इनसे बचने का निर्देश है। यहाँ स्पर्शनेन्द्रिय संयम पर विशेष जोर दिया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मचारी स्त्री एवं पशु को अपने हाथ से न छुए तथा स्त्री के पैर आदि न दबाए, इतना ही नहीं, स्वयं के शरीर के गुह्य प्रदेशों के स्पर्श का भी निषेध
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