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पत्युर्मुत्यौ विशन्त्यग्नौ, याः प्रेमरहिता अपि।। अर्थात् चौलुक्य पुत्रियों का साहस संसार में सबसे अधिक और विस्मयकारी है, जो पति की मृत्यु होने पर प्रेम के बिना भी अग्नि में प्रवेश कर जाती है। " (ग) रूप कथा - स्त्रियों के रूप का वर्णन करना। वृत्तिकार के शब्दों में -
चन्द्रवक्त्रा सरोजाक्षी, सद्गी पीन धनस्तनी।
किं लाटी नो मता साऽस्य, देवानामपि दुर्लभा।। चन्द्रमुखी, कमलनयना, मधुर स्वर वाली और पुष्ट स्तन वाली लाट देश की स्त्री क्या उसे सम्मत नहीं है? जो देवों के लिए भी दुर्लभ है। 92 (घ) नेपथ्य कथा- स्त्रियों के वेशभूषा विषयक कथा।
धिग नारी रौदीच्चा, बहुवसनाच्छादितांगुलतिकत्वात्।
यद् यौवनं न युनां चक्षुर्मोदाय भवति सदा।। अर्थात् उत्तरांचल की नारी को धिक्कार है जो अपने शरीर को बहुत सारे वस्त्रों से ढक लेती है। उसका यौवन युवकों के चक्षुओं को आनंद नहीं देता। 2.3.3 स्त्री कथा के दोष - ठाणं सूत्र के अनुसार बार-बार स्त्री कथा आदि विकथा करने से अतिशायी ज्ञान और दर्शन उत्पन्न होते-होते रुक जाते हैं। निशीथ सूत्र के भाष्यकार ने स्त्री कथा विशेष से होने वाले दोष का निर्देश इस प्रकार किया है।
(क) स्वयं के मोह की उदीरणा (ख) दूसरों के मोह की उदीरणा
जनता में अपवाद (घ) सूत्र और अर्थ के अध्ययन की हानि (ड) ब्रह्मचर्य की अगुप्ति (च) स्त्री प्रसंग की संभावना।
ज्ञाता धर्म कथा सूत्र में इसका उदाहरण भी मिलता है कि द्रौपदी के रूप की कथा सुनकर ही उसका अपहरण हुआ।
इन्हीं दृष्टियों से आचारांग सूत्र," सूत्रकृतांग, प्रश्नव्याकरण, दसवैकालिक,100 उत्तराध्ययन,'आवश्यक सूत्र आदि ग्रंथों में ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए स्त्री कथा का वर्जन किया गया है।
निशीथ सूत्र में साधु के न कहने योग्य कामकथा कहने तथा रात्रि के समय स्त्री परिषद् में या स्त्रीयुक्त परिषद् में अपरिमित कथा करने का गुरुचौमासिक प्रायश्चित्त बताया गया है। 103
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