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तज्ज्ञानं तच्च विज्ञानं तत् तपः स च संयमः।
सर्वमेकपदे भ्रष्टं, सर्वथा किमपि स्त्रियः।। ज्ञान, विज्ञान, तप और संयम - ये सब स्त्री के सहवास से सहसा भ्रष्ट हो जाते हैं। 2.2.2 स्त्री चरित्र (स्वभाव) का चित्रण - जैन आगमों में मुनि के बाईस प्रकार के परीषहों (कष्टों) का वर्णन मिलता है। उनमें एक है - स्त्री परीषह। यह एक अनुकूल परीषह है। इससे प्रभावित होकर साधक संयम रत्न को खो देता है। अध्ययन से ऐसा भी प्रतीत होता है कि स्त्री परीषह सर्वाधिक हानिकारक है इसीलिए स्त्री परीषह की भयंकरता तथा उससे बचने के उपाय का विस्तृत वर्णन जैन आगमों में स्थान-स्थान पर किया गया है। साधक की सावधानी के लिए स्त्री के स्वभाव का बड़ा मनोवैज्ञानिक चित्रण किया गया है। स्त्रियों की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं - (1) कुटिल बुद्धि - सूत्रकृतांग सूत्र में स्त्री चरित्र का विस्तृत वर्णन मिलता है। उसके अनुसार स्त्रियां पुरुष को फंसाने के सारे उपाय जानती हैं। सर्व प्रथम वह मनुष्य को प्रलोभन देती है। भोजन, वस्त्र आदि के लिए आमंत्रित करती है। वे भिक्षु के अत्यन्त निकट आकर बैठ जाती है तथा विभिन्न प्रकार की चेष्टाओं द्वारा उसके चित्त को आकर्षित करने का प्रयास करती
जब कामासक्त व्यक्ति उसके चंगुल में अच्छी तरह फंस जाता है तब वह स्त्री उसके सिर पर पैर से प्रहार करती है। अर्थात् वह उस पुरुष से मनचाहा काम कराने लगती है। 2 स्त्री स्वभाव का वर्णन करते हुए व्याख्या साहित्य में कहा गया है -
दुर्ग्राह्यं हृदयं यथैव वदनं यद् दर्पणान्तर्गतं, भावः पर्वमार्गदुर्गविषमः स्त्रीणां न विज्ञायते।
चित्तं पुष्करपत्रतोयचपलं नैकत्र सन्तिष्ठते,
नार्यो नाम विषाकुरैरिव लता दोषैः समं वर्द्धिताः।। दर्पण में प्रतिबिम्बित बिम्ब जिस प्रकार दुर्ग्राह्य होता है, उसी प्रकार स्त्री का हृदय भी दाह्य होता है। पर्वत मार्ग पर स्थित दुर्ग जिस प्रकार विषम होता है, वैसी ही विषम होती है स्त्री की भावना। उसका चित्त कमल पत्र पर स्थित पानी की बूंद की भांति चंचल होता है। वह कहीं एक स्थान पर स्थिर नहीं होता। जिस प्रकार विष लताएं विषांकुरों के साथ बढ़ती है, वैसे ही स्त्रियां दोषों के साथ बढ़ती हैं।
ज्ञातासूत्र के वृत्तिकार ने स्त्रियों की विभिन्न काम चेष्टाओं का विभाजन इस प्रकार किया है
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