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दुर्जन के संसर्ग से लोग संयमी के भी सदोष होने की शंका करते हैं। जैसे मद्यालय में बैठ कर दूध पीने वाले ब्राह्मण के भी मद्यपायी होने की शंका होती है। *
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2.2.0. स्त्री संस्तव एवं संवास वर्जन
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विविक्तशयनासन से यह सहज लाभ होता है कि साधक स्त्रियों के साथ संस्तव से बच जाता है। संस्तव का अर्थ है परिचय घनिष्ठता सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने संस्तव का अर्थ परिचय किया है। उनके अनुसार स्त्रियों के साथ उल्लाप, समुल्लाप करना, उन्हें कुछ देना, उनसे कुछ लेना आदि संस्तव के ही प्रकार हैं।" सूत्रकृतांग वृत्ति में संस्तव का अर्थ परिचय, घनिष्ठता किया है।" यहाँ चूर्णिकार ने संस्तव का अर्थ हास्य, कन्दर्प क्रीड़ा आदि भी किया है। चूर्णिकार एवं वृत्तिकार ने संस्तव के और भी अर्थ दिए हैं जैसे स्त्री के घर बार-बार जाना, उनके साथ बातचीत करना, उसको आसक्त दृष्टि से देखना आदि। " सूत्रकृतांग चूर्णिकार ने संवास का अर्थ इस प्रकार किया है स्त्रियों के साथ एक घर में या स्त्रियों के निकट रहना संवास है। जैन आगमों में अनेक स्थानों पर स्त्रियों के साथ संस्तव एवं संवास का निषेध विभिन्न कारणों के साथ किया गया है। आचारांग सूत्र में ब्रह्मचर्य सुरक्षा के लिए एकान्त में स्त्रियों के समीप बैठने, एकान्त में उनके साथ बातचीत या विचार-विमर्श करने का निषेध किया गया है। सूत्रकृतांग सूत्र के चूर्णिकार ने स्त्री के साथ संवास के दोषों को स्पष्ट करते हुए इसके निषेध को समर्थन दिया है। उनके अनुसार काठ से बनी जड़ स्त्री के साथ भी ब्रह्मचारी का रहन उचित नहीं तो भला सचेतन स्त्री के साथ संवास कैसे उचित हो सकता है। उन्होंने इसके चार दोष बताए हैं। (1) परिचय बढ़ता है (2) आलाप-संलाप बढ़ता है (3) अशुभ भाव उत्पन्न होते हैं (4) संयम से विमुख होने वाली कथाएं होने लगती हैं।"
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सूत्रकृतांग सूत्र में ब्रह्मचारी के लिए दासियों के साथ सम्पर्क से भी बचने का निर्देश है। दासियां घर के काम के क्लेश से उतप्त रहती हैं। सूत्रकार उनसे भी बचने का निर्देश देते हैं तो फिर स्वतंत्र और अत्यंत सुखमय जीवन बिताने वाली स्त्रियों के सम्पर्क का तो कहना ही क्या ?" इस सूत्र में शंकनीय स्त्रियां ही नहीं अशंकनीय स्त्रियों के साथ भी संस्तव का वर्जन किया गया है।" इसकी व्याख्या में चूर्णिकार कहते हैं
मातृभिर्भगिनीभिश्च नरस्यासंभवो भवेत् । बलवानिन्द्रिय ग्रामः पण्डितोऽप्यत्र मुह्यति ।।
अर्थात् यह सच है कि माता, भगिनी आदि के साथ मनुष्य का कुसंबंध नहीं होता फिर
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भी इन्द्रियां बलवान होती हैं। उनके समक्ष पंडित भी मूढ़ हो जाते हैं।
प्रश्नव्याकरण सूत्र में ऐसे समस्त स्थान जहां स्त्रियों का आवागमन हो और जहां रहने से दुर्ध्यान उत्पन्न हो उसे त्याग देने का निर्देश है।"
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