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________________ उत्तराध्ययन सूत्र में उन्मार्गगामी व्यक्तियों से दूर रहने को कहा गया है। ज्ञानार्णव में भी ब्रह्मचर्य व्रत को सुरक्षित रखने के लिए बुरी संगत से बचना आवश्यक माना गया है। सूत्रकार के शब्दों में - ब्रह्मचर्य विशुद्धयर्थं संगः स्त्रीणां न केवलम् । त्याज्यः पुंसामपि प्रायो विटविद्यावलम्बिनाम् ।। ब्रह्मचर्य व्रत को निर्मल रखने के लिए केवल स्त्रियों के ही संसर्ग का परित्याग करना आवश्यक नहीं है, बल्कि काम-कला का आलम्बन करने वाले दुराचारियों के संसर्ग का परित्याग करना भी आवश्यक है। कुसंगत के परिणाम को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं - मदान्धैः कामुकैः पापैर्वञ्चकैर्मागविच्युतैः । स्तब्धलुब्धाधमैः सार्धं संगो लोकद्वयान्तकः ।। जो मद से अन्धे हो रहे हैं, विषयी हैं, पापी हैं, धूर्त हैं, सन्मार्ग से भ्रष्ट हैं, अभिमानी हैं, लोभी हैं और निकृष्ट आचरण करने वाले हैं, उनके साथ किया गया संसर्ग दोनों ही लोकों को नष्ट करने वाला होता हैं। 29 भगवती आराधना में भी ब्रह्मचर्य सुरक्षा के लिए कुसंगत के वर्जन पर बल दिया गया है। सरल दृष्टान्त देते हुए सूत्रकार कहते हैं : जइ भाविज्जइ गंधेण मट्टिया सुरभिणा व इदरेण। किह जोएण ण होज्जो परगुणपरिभाविओ पुरिसो।। यदि सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध के संसर्ग से मिट्टी भी सुगन्धित अथवा दुर्गन्धयुक्त हो जाती है तो संसर्ग से पुरुष पार्श्वस्थ आदि के गुणों से तन्मय क्यों न होगा ?30 पुनश्चः सुजणो वि होइ लहओ दुज्जणसंमेलणाए दोसेण। माला वि माल्लगरूया होदि लहु मडयसंसिट्ठा।।। दुर्जनों की गोष्ठी के दोष से सज्जन भी अपना बड़प्पन खो देता है। फूलों की कीमती माला भी मुर्दे पर डालने से अपना मूल्य खो देती है।" यदि आत्मशक्ति के बल पर किसी साधक पर कुसंगत का असर न भी पड़े तो भी लोक व्यवहार में यह अच्छा नहीं लगता। सूत्रकार के शब्दों में - दुज्जणसंसग्गीए संकिज्जदि संजदो वि दोसेण। पाणागारे दुद्धं पियंतओ बंभणो चेव।। 124
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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