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से पाप कर्म का बंधन नहीं करता और पूर्व बद्ध कर्मों की निर्जरा कर देता है। इस प्रकार वह पाप कर्म का विनाश कर चार अन्तों (गति) रूप संसार अटवी को पार कर जाता है।
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इतना ही नहीं, ब्रह्मचर्य का त्रिकाल महत्त्व बताते हुए कहा गया है कि 'इसका पालन कर अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं और भविष्य में भी होंगे। *
योग सूत्र में हेमचंद्राचार्य ने मोक्ष का एकमात्र कारण ब्रह्मचर्य को माना है।' 1.4 (6) साधना की क्षमता में वृद्धि
उत्तराध्ययन सूत्र में ब्रह्मचर्य से साधना की क्षमता में विकास होना माना गया है। सूत्रकार की भाषा में जो मनुष्य इन स्त्री विषयक आसक्तियों का पार पा जाता है, उसके लिए शेष सारी आसक्तियां वैसे ही सुतर (सुख से पार पाने योग्य) हो जाती हैं, जैसे महासागर को पार पाने के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी ।'
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2.0
ब्रह्मचर्य से हानियां
जिस प्रकार किसी शुभ प्रवृत्ति के लिए प्रेरक तत्त्व उससे होने वाले लाभ का ज्ञान है उस प्रकार अशुभ प्रवृत्ति से निवृत्ति के लिए उससे होने वाली हानि का ज्ञान प्रेरक बनता है। अब्रह्मचर्य सेवन से क्षणिक सुख की अनुभूति तो हो सकती है लेकिन इसके परिणाम किपाक फल के सेवन के समान अति भयानक होते हैं। जैन आगमों में अब्रह्मचर्य गत दुष्परिणामों एवं इससे होने वाली हानियों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
2.1.
शारीरिक हानियां
अब्रह्मचर्य का सेवन शरीर के माध्यम से होता है इसलिए शरीर के साथ इसका बहुत गहरा एवं सीधा संबंध है। अब्रह्मचर्य का प्रत्यक्ष प्रभाव शरीर से ही प्रदर्शित होता है। जैन आगमों में इससे होने वाली अनेक प्रकार की शारीरिक हानियों का उल्लेख हैं
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2.1(1) निर्बलता : सानंद जीवन जीने के लिए शरीर का शक्तिशाली होना बहुत जरूरी है। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य की शारीरिक शक्ति का रहस्य 'वीर्य' में निहित होता है। अब्रह्मचर्य के सेवन से वीर्य का क्षय होता है उसका सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है। आचारंग भाष्य के अनुसार अब्रह्मचर्य सेवन से शरीर निर्बल हो जाता है। फलस्वरूप कामासक्त व्यक्ति को अनेक प्रकार की पीड़ा भोगनी पड़ती है।
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2.1 (2) जरा (बुढापा) मनुष्य का दीर्घ यौवन उसकी जीवन शैली पर निर्भर करता है। यदि जीवन शैली संयम प्रधान है तो लंबी उम्र में भी जरा का आक्रमण नहीं होता। इसके विपरीत उत्तराध्ययन के अनुसार जो कामनाओं में आसक्त होते हैं तथा वृथा आकांक्षाओं का जाल बुन रहते हैं, वे शीघ्र ही वृद्धावस्था के शिकार हो जाते हैं। "
2. 1 (3) इंद्रीय मूढ़ता : आचारंग सूत्र के अनुसार काम के अति सेवन से इंद्रियों की क्षमता क्षीण
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