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जे य कंते पीए भोए, लधे विपिट्ठी कुव्वई।
साहीणे चयई भोए, सेहू चाई ति उच्चई।। किन्तु औपपातिक सूत्र में ब्रह्मचर्य साधना को इसका अपवाद माना गया है। इस ग्रंथ के अनुसार मन बिना- परवशपने से भी ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले के भी अकाम निर्जरा होती है और उसके भी 14000 वर्ष स्थिति वाले देव होने का उल्लेख है।"
दसवैकालिक सूत्र में भी ब्रह्मचर्य को देवगति का निमित्त माना गया है। 18
उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार इस मनुष्य भव में काम भोगों से निवृत्त होने वाले पुरुष का आत्मप्रयोजन नष्ट नहीं होता। वह पूतिदेह (औदारिक शरीर) का निरोध कर देव होता है तथा देवलोक से च्युत होकर वह जीव विपुल ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण, आयु और अनुत्तर सुखवाले मनुष्य कुल में उत्पन्न होता है। 1.4(5) मोक्ष - मोक्ष का अर्थ है कर्मों का आत्यन्तिक क्षय। जन्म-मृत्यु-रोग-बुढ़ापा आदि सारे दु:खों का समाप्त होना मोक्ष है। आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति होता है। जैन आगमों में अनेक स्थानों पर ब्रह्मचर्य का निरूपण मोक्ष के साधन के रूप में किया गया है।
सूत्रकृतांग सूत्र में इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है- 'जो स्त्रियों के प्रति अनासक्त हैं वे संसार को तरे हुए के समान कहे गए हैं। ३०
ये काम वासना को जीतने वाले संसार समुद्र का पार पा जाएंगे जैसे व्यापारी समुद्र का पार पा जाता है। 1
जो स्त्रियों का सेवन नहीं करते (जो काम वासना से मुक्त होते हैं) वे जन मोक्ष पाने वालों की पहली पंक्ति में हैं।
ठाणं सूत्र में विद्या और चरण- इन दो स्थानों से मुक्त होना बताया गया है। स्पष्ट है कि चारित्र में ब्रह्मचर्य भी समाहित है। 53
इसी सूत्र में भोग प्राप्ति के लिए संकल्प (निदान) न करना भी मोक्ष का साधन है। निदान के फलस्वरूप प्राप्त भोग में आसक्ति तीव्र होती है तथा उससे मुक्त होना भी असंभव होता
ज्ञाताधर्मकथा में भी विषयासक्ति से मुक्त व्यक्ति के चार गति वाले इस संसार कांतार (जंगल का रास्ता) से पार हो जाने की बात की गई है। 55
प्रश्नव्याकरण सूत्र में ब्रह्मचर्य को मुक्ति का द्वार खोलने वाला तथा कभी क्षीण न होने वाला पद (मोक्ष) को प्रदान करने वाला बताया गया है।
दसवैकालिक सूत्र में भी साधना का अंतिम फल मोक्ष बताया गया है।" उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार इन्द्रिय और मन को विषयों से दूर रखने वाला नए सिरे
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