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२] वालामालिनी कल्प। जो हैं ऐसे चंद्रमाके समान प्रभावाले भगवान चंद्रप्रभको मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ कुमुददलधवल गात्रा, महिषमहावाहिनोज्वलाभरणा । मां पातु वह्नि देवी, ज्वालामाला करालोगी ॥२॥
अर्थ-कुमुदके दलके समान श्वेत शरीरवाली, महिपकी सवारी तथा उज्वल आभूषणवाली, अग्निके समान भयंकर अंग-- काली ज्वालामालिनी मेरी रक्षा करे ॥ २॥.. जयनादेवी ज्वालामालिन्युद्यस्त्रिशूलपाश ऊषा। , कोदंडकांड फलवरद, चक्रचिह्नोज्वलाष्टभुजा ॥ ३ ॥ ___ अर्था-उठे हुए त्रिशूल, पाश, मछली, धनुष, मंडल फल वरद (अमि) और चक्रके चिह्नसे उज्वल अष्ट भुजावाली ज्यालामालिनी देवी जयवन्त हो ॥३॥
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायान् , सकलसाधुमुनिमुख्यान् । प्रणिपत्य मुहुर्मुहुरपिवक्ष्येऽहं, ज्वालिनीकल्पम् ॥ ४ ॥
अर्थ-मैं अहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुओं और मुख्य मुनियोंको बारम्बार नमस्कार करके ज्वालामालिनी कल्पको कहूंगा ॥४॥ दक्षिण देशे मलय हेम ग्रामे, मुनिममहात्मासीत् । हेलाचार्यों नासा द्रविडगणाधीश्वरो धीमान् ॥५॥
प्रथम परिच्छेद । ग्रन्थ रचनाका कारण
कमलश्रीकी कथा अर्थ-दक्षिण देशके मलय हेम नामके ग्राममें द्रविड गणके अधीश्वर हेलाचार्य नामके बुद्धिमान महात्मा मुनि थे॥५॥ खच्छिष्या कमलश्री श्रुतदेवी वा समस्त शास्त्रज्ञा। सा ब्रह्मराक्षसेन ग्रहीता, रौद्रण कर्मवशात् ॥ ६॥
अर्थ-उनकी एक समस्त शास्त्रोंको जाननेवाली दसरी श्रतदेवीके समान कमलश्री नामकी शिष्याको भाग्यवश रौद्र ब्रह्मराक्षसने पकड़ लिया ॥६॥
रोदिति हाहाकारैः स्फुटाइ हासं तनोति संध्यांयां । जपति पठत्यथ वेदान् , हसति पुनः कह कह ध्वनिना ॥७॥
अर्थ-अब वह कभी तो हाहाकार करके रोती, कभी सार्यकालके समय अट्टहास कर करके हंसती, कभी जप करती, कभी वेदोंको पढ़ती और कभी कहकहा लगाकर हंसती ॥७॥
कोसा वास्ते मंत्री, यो मोचयति स्वमंत्रशक्त्या मां। बक्तीति सावलेप, सविकारं जमणं कुरुते ॥ ८॥
अर्थ-वह कभीर कष्टसे कहती. कि ऐसा कौन मंत्र