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दशम परिच्छेद।
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को अथ दशम परिच्छेदः
शिष्यको विद्या देनेकी विधि ईशानदिगभिमुखजलनिपातयुतशून्यजिनगृहोद्देशे। अपतित गोमय गोमूत्र विहित सम्माजिते रम्ये॥१
अर्थ-जिन मंदिरके एक स्थानमें ईशान कोणकी ओर द्वार बनाकर पहिले जल छिड़ककर फिर उसे पृथ्वी पर न मिलेर गोबर और गौमत्रसे लीप पोतकर शुद्ध करे ॥१॥
चूर्णेन पंचवर्णेन समानहस्तायतं चतुष्कोणं । रेखा त्रयेण विधिना सत्याख्यं मंडलं विलिखेत् ॥ २॥ ___अर्थ-फिर वहां पर पंच वर्ण चर्णसे समान हाथ लंबे चौड़े चौकोर निम्नलिखित सत्य नामवाले मंडलको तीन । रेखाओंसे विधिपूर्वक बनावे ॥ २ ॥
तस्यवहिर्वारिनदीभ्रांतावर्तो भिजलचराकीणां । पश्चिमदिशिजल मध्ये रूपं वर्णस्यलिखितव्यं ॥३॥
अर्था-उसके बाहर पश्चिम दिशामें समुद्र बनावे, जिसमें नदियोंका जल आ रहा हो लहरें उठ रही हों और जलचर मरे हुए हों फिर उस समुद्र में वरुणका रूप बनावे ॥३॥
मलयजकुसुमाक्षतचर्चितान् सितान् वीजपूरपिहित मुखान् । पूर्णघटान् सहिरण्यान् तत्कोणचतुष्टये दद्यात् ॥४॥
अर्थ-उस मण्डलके चारों कोनोंमें चंदन, पुष्प और अक्षतसे पूजे हुए बीजोंसे मुखतक भरे हुए हिरण्य सहित चार श्वेत घडोंको रखे ॥४॥ सौवर्ण रौप्यं वा पदयुगलं कारयेनतेव्या : अभिषिच्य पंचगव्यैः दधिघृतसत्क्षोरगंधजलैः॥ ५ ॥
अर्थ-फिर वहांपर देवीके चरण सुनहरे या रौप्य वर्णके बनाकर उनका पंच गव्य दही घी दूध गंध और जलसेअभिषेक करे ॥५॥ मंडल हक्षिणदेशे पदयुगलं पूजितं निवाय तयो। नैऋत्यादिषु दिवस्यान्वय चरणद्वयानि लिखेत् ॥ ६ ॥
अर्थ-इन चरणोंको मंडलकी दक्षिण दिशामें बनाकर पूजा करे और दूसरे चरण नैऋत्य आदि दिशाओंमें बनावे ॥६॥
अहत्पद कमल युगं मंडलमध्ये बिलिख्य चर्णेन । कोणेषु सिद्धसूर्यपदेशकमुनिपदयुगानि लिखेत् ॥ ७ ॥
अर्थ-मंडलके मध्यमें चूर्णसे भगवान अर्हन देवके. चरण बनावे । और कोनोंमें सिद्ध सूरि उपदेशक और मुनियों के. चरण बनावे ॥७॥