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अर्थ-इनके सन्मुख घंटा पताका और माल। आदि रखकर सिद्ध मंत्रसे चरुकी बलि प्रतिदिन पृथकर देनी चाहिये ॥२०॥
पुरुषातीतायुवर्षे संख्यया तंदुलांजलिनादाय । तत्पष्टेन कुर्याद्ग्रहरूपं लक्षणसमेतं ॥ २१ ॥
अर्थ-पुरुषकी बीती हुई आयुके वर्षोंकी संख्या प्रमाण चांवलोंकी अंजुलिको लेकर उसको पीस कर लक्षण सहित ग्रहोंका रूप बनावे ॥ २१॥ तुद्रुपं बहुबलिभक्षगंध समाल्यदीपधूपयुतं । अग्ने निधाय तस्या तुरस्य नव पटलिका तस्थ ॥ २२ ।।
अर्थ-उनको अपने सन्मख पटडों पर स्थापित करके गंध उत्तम माला दोप और धूपकी बहुत प्रकारको बलि देवे ॥२२॥ खड्गै रावण विद्या मुच्चैरुचारयन्मंत्री। पुष्पैत्रिवर्ध्य पूर्व स तंदुलै गृहमुखं हन्यात् ॥ २३ ॥
अर्थ-फिर मंत्री खडगै रावण विद्याका जोरसे उच्चारण करता हुआ पहले पुष्षोंकी बलि देकर फिर उनके मुख पर चांवल मारे ॥ २३ ॥ रूपेण तेन पश्चान्निवयं विधिना जलस्यमध्ये तु। दद्यालि निशयां समस्त दोषान् हरत्याशु॥२४॥
अर्थ-फिर उस रूपको रात्रि में विधिपूर्वक बलि देकर जलमें स्थापित कर देतौ समस्त दोष शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ॥ २४॥
यह ज्वालामालिनीदेवीकी कही हुई इस प्रकारकी "नीराजनविधि " ग्रह, भूत, शाकिनी और अपमृत्युके भयको शीघ्र ही दूर करती है।॥ २५ ॥ इतिश्री हेलाचार्य पणोत अर्थ में श्रीमद इन्द्रनन्दि योगी विरचित ग्रन्थमें व्याळामालिनी कल्पकी, प्राच्य विद्यावारिधि काव्य साहित्य तीर्थाचार्य श्री चन्द्रशेखर शस्रो कृत भाषाटीकामे "नीराजन विधि , नामक
बम पच्छेद समाप्त हुना॥९॥
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