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अष्टम परिच्छेद ।
ज्वालामालिनो कम्प। युगल, केकडा, कछवा, मैंडक, मछली, और नाकेको चंचल नलकी तरंगोंसे युक्त ॥३॥ चर्णेन पंच वर्णेन परिविलिखेद्विपुलपअिनिखंड। तवहिरपि चतुरस्रमंडलमालिख्य विधिनैव ॥ ४ ॥
अर्थ-और बडे२ कमल समूहोंसे युक्त पंचवर्ण चूर्णसे । बनावे । और उसके चारो ओर विधिपूर्वक एक चौकोर मंडल बना देवे ॥४॥ कोणेषु सत्यमलयजककुमकुसुमार्चितान धवल वर्णान् । सहिरण्या पूर्ण घटान् विधाय वरवीजपूरमुखान् ।। ५।।
अर्थ-उस मंडलके कोनोंमें चंदन कुकुम और पुष्पोंसे पूजा किये हुए श्वेतवर्णवाले, स्वणयुक्त और सदर बीजोंसे मुख तक भरे हुए घडोंको रक्खे ॥ ५॥ तदुपरि विधाय सत्पुरुषमंडपं तस्य मध्य देशेतु । चक्री कृत रंध्रनवर्क बिलंबमानं घटं बद्धा ॥ ६ ॥
ना कार्य करनेके पश्चात , उस मंडलके ऊपर सुदर मडप तान देवे। और उसके बीच में एक ऐसा घडा लटका दे। जिसमें गोलाकार बराबर२ नौ छिद्र हों॥६॥
मृत्युञ्जयाख्ययंत्र नामसमेतं विलिख्यं भृर्जदले। सिक्थक्वेष्टितमेतत् सहिरण्यं निक्षिपेत्कुम्भे ॥ ७ ॥
अर्था-फिर भोजपत्रपर मृत्यजय नामके यंत्रको नाम सहित लिखकर और मोमसे लपेटकर सुवर्ण सहित उस घडे में डाल दे॥७॥
मृत्सदेवीसौम्याक्षीरतरुत्वकसुवर्णहरिकान्तापक्कोशीरहरिद्रा काश्मीरकुसुमानि ॥ ८॥ ____ अर्थ-फिर मिट्टी, सहदेवी, धवाले वृक्षोंकी छाल, सुवर्णलता, हरिकांता, पका हुआ उशीर, हलदी, दूब और केशरके कूल ॥ ८॥ मलयसहागुरुचंदनमित्येतान्यंबना समापिष्य । पंच दशभिश्च मंत्रः प्रत्येक मंत्रयेक्रमशः ॥ ९॥
अर्थ-लाल चंदन और सफेदचंदनको जलसे पीसकर पन्द्रह मंत्रोंमेंसे प्रत्येकसे पृथक् पृथक् अभिमंत्रित करे ॥ ९ ॥ एकैकोनोद्वर्तनकेन समुदत्यो देवदतं तं । मूम्पपतितैम्म लैस्तैः पुतलिकां कारयेदेकां ॥ १० ॥
अर्थ-और एक एक करके प्रत्येकसे उस साधक देव दत्तका उबटन करके उबटन करने में जो मल नीचे गिरे उसे पृथ्वीपर न गिरने देकर उससे एक मूर्ति बनावे ॥ १० ॥ प्रवराष्टदिशापालकपुतलिकाः स्वस्वर्णसंयुक्ताः। लक्षण युक्त दिव्या वकारयेसिद्ध मृतिकया ॥ ११ ॥