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कल्प
का महाकाखल्यन्विता ॥
४९ ॥
पाठा लक्ष्मणिकेत्य शून्य सितगोदुग्धेन विष्टापिचेत् । पुष्पवस्व सहिता पुत्रं लभेत ध्रुवं ॥ अर्थ-शिप, फणी, फल, चव्य, चित्रक, मही, कूष्मांडी, निःपर्णी, ब्रह्मी, दर्दुर, श्वेतवराही, खली, पाठा और लक्ष्मणकाको गऊके दूध में पीसकर सेवन करनेसे वंध्या स्त्री भी ऋतुकालमें पति संगम करनेसे निश्चयपूर्वक पुत्रको पाती है ॥ ४९ ॥ पीत्वामृतोपधमिदं दिवसचतुष्टयमुभावपि स्थित्वा । निर्व्वत्यैकदेशे भुजेयातां मधुरमन्नं ॥ ५० ॥
अर्थ — इस अमृत औषधिका पान करके दम्पति चारदिन तक ठहरकर उत्तम स्थानमें भोग करे मधुर अनको खावे ॥५० स्नात्वा चतुर्थदिवसे स्वमतृ संकल्पमाप्यनिशिवनतानि । पुत्री पुत्रं लभते वामेतरपार्श्व संसृप्ता ॥ ५१ ॥
अर्थ- चौथे दिन स्नान करके स्त्रियां अपने पतिके संकल्पसे उसकी दाहिनी ओर सोकर पुत्र और बाई ओर सोकर पुत्रियोंको पाती है ॥ ५१ ॥
इनिश्री हेटाचार्य प्रणेत अर्थ में श्रीमत् इन्दनदि मुनि बिरचित प्रथमें व्याडामालिनी कल्पकी, area fam काव्य
साहित्य तीर्थाचार्य श्री चन्द्रशेखर शाखा कृत भाषाटीका "वश्य अधिकार" नामक सप्त परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ७ ॥
अम परिछेद |
अथ अष्टम परिच्छेदः
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वसुधारा स्नानके स्थानकी विधि ईशानाशाभिमुखाबुपात संयुक्तरम्यशुचिदेशे सम्माज्जिते कपिलागोमयदधिदुग्धघृतमूत्रैः॥१॥
अर्थ - एक पवित्र स्थानमें ईशान कोणकी ओर मुख करके पहले जल डाल कर फिर उस स्थानको कपिला गौके गोबर, दहीं, दूध, घी, मूत्रसे, साफ करे ॥ १ ॥ नामकला पुर्णेन्दुसमेतं मध्ये विलिख्य तस्य वहिः । कोकनद कुमुद कुबल रक्तोत्पलजलजकुसुमयुतं ॥ २ ॥
अर्थ - इसके पश्चात् उस स्थानके मध्य में नामको "आं ई ऊं ए" बीजों के बीचमें लिखे। और उसके चारों ओर कुमुद, लाल कमल, नील कमल, और श्वेत कमल, अपने पुष्पों सहित ॥ २ ॥
चाहुबलबला कासारसकल हंस मिथुनसंयुक्तं ।
कर्कटक कूर्म्म दद्दर ऊषमकरतरतरंगतं ॥ ३ ॥
अर्थ - चकवा, बगुला, बलाका, सारस, सुन्दर हंसों के