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ज्वालामालिनी कल्प
अर्थ- इन दश अधिकारोसे मैं संक्षेपमें देवीके कथनानुसार इस ग्रंथका वर्णन करूंगा ॥ २९ ॥
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मन्त्रीके लक्षण
मौनीर्नियमित चितो मेधावि बीजदारण समर्थः । - मायामदनमदोनः सिध्यति मंत्रिर्नसंदेहः ॥ ३० ॥
अर्थ - मौनसे रहनेवाला, चित्तको नियममें रखनेवाला, बुद्धिमान, बीजाक्षरोंको अलग करने में समर्थ माया कामदेव तथा मदसे रहित मंत्रवाला पुरुष निस्संदेह सिद्धिको प्राप्त कर लेता है।
सम्यग्दर्शन शुद्ध देव्य चैन तत्पुरो व्रतसमेतः । मंत्रजपहोमनिरतो नालस्यो ज्ञायते मंत्री ॥ ३१ ॥
अर्थ- जो शुद्ध सम्यग्दृष्टी देवीको पूजनेवाला व्रती मन्त्र जप तथा हवनको करनेवाला तथा आलस्य रहित हो वह मंत्री ' मंत्रवाला ' होता है ॥ ३१ ॥
| देवगुरुसमय भक्तः सविकल्पः सत्यवाक् विदग्धश्व | व कपटुरपगतशुक्रः शुचिरौद्रमना भवेन्मंत्री ॥ ३२ ॥
अर्थ- देव शास्त्र तथा गुरुका भक्त सावधान सत्यवादी बुद्धिमान् बोलने में चतुर ब्रह्मचारी पवित्र तथा रौद्र मनवाला मंत्री होता है ।
प्रथम परिकछेद ।
देव्याः पदयुगभक्तो हेलाचार्यक्रमाब्जभक्तियुतः । स्वगुरूपदिष्टमार्गेण वर्तते यः स मंत्री स्यात् ॥ ३३ ॥
अर्थ — जो देवीके चरणकमलका भक्त हो, हेलाचार्य के चरण कमलमें भक्ति रखता हो और अपने गुरुके बतलाये हुए मार्ग पर चलनेवाला हो, वह मंत्री होता है ॥ ३३ ॥
विद्यागुरुमतियुते तुष्टिं पुष्टिं ददाति खलु देवी । विद्यागुरुभक्तिवियुक्त चेतसि द्वेष्टि सुतरांसा ॥ ३४ ॥
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अर्थ- देवी विद्या तथा गुरुमें भक्ति रखनेवाले पुरुषको तुष्टि और पुष्टि दोनों ही देती है, तथा विद्या और गुरुमें भक्ति न रखनेवालोंसे चित्तमें स्वभाव से अत्यन्त द्वेष करती है ॥ ३४ ॥
सम्यग्दर्शनदूरो वा छांदसो मयसमेतः । शून्यहृदयश्च लजः शास्त्र ऽस्मिन् नो भवेन्मंत्री ॥ ३५ ॥
अर्थ- जो सम्यग्दर्शनसे रहित अशुद्ध वाणीवाला हो, वेद पाठी हो, भय करनेवाला हो, शून्य हृदय हो, और लजा करता हो, वह इस शास्त्रमें मन्त्री नहीं हो सकता ॥ ३५ ॥
इति टाचार्य प्रणीत अर्थ में श्रीमान् इन्द्रनन्दि सुनि विचित ग्रन्थ ववालामालिनी कल्पक आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्रो कृत भाषा टीकामे मंत्री उक्षणमा ला पहला परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ १ ॥
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