________________
[१३
Ammonium
ज्वालामालिनी कप।
प्रथम परिच्छेदः । द्वितीय परिच्छेद
कौन ग्रह किसको पकडता है ? का ग्रहोंके पकड़ने के कारण ...
पुरुषग्रहोथ पुरुष स्त्रियं तथा स्त्री ग्रहो न गृह्णाति । अतिहष्टमति विषणं भवतिरस्नेहवैरसम्बधं । ।
पुरुष ग्रहस्तु वनितां गृह्णाति स्त्रीगृहः पुरुषं ॥ ४ ॥ भीतं चान्यमनस्कं गृहाः प्रगृह्णति भुवि मनुजं ॥१
अर्थ-साधारणतः पुरुष ग्रह पुरुषको और स्त्री ग्रह स्त्रीको
ग्रहण नहीं करते, किंतु पुरुष ग्रह स्त्रीको और स्त्री ग्रह पुरुषको अर्थ-अत्यन्त प्रसन्न मनवाले, दुःखी मनवाले, अथबा
ही ग्रहण करते हैं ॥४॥ अन्य मनस्क और डरपोक पुरुषको पूर्व जन्मके प्रेम अथवा बैरके सम्बन्धसे ग्रह पकड़ लेते हैं ॥१॥
रतिकामेग्रहनियमः प्रोक्तोऽयं नेतरत्र नियमोऽस्ति ।
पुरुषगृहोऽपि पुरुषं गृह्णाति स्त्रीगृहोपि वनितानां ॥५॥ - रतिकामा बलिकामा निहन्तुकामा ग्रहाः प्रग्रहणन्ति । बरेण हन्तु कामा गृहणान्त्यवशेषकारणः शेषाः ॥२॥
अर्थ-यह नियम ग्रहोंके रतिकी कामनासे पकड़नेसे है। अर्थ-कोई ग्रह रतिकी इच्छासे, कोई बलिकी इच्छासे,
अन्यत्र नहीं है, क्योंकि अन्य इच्छाओंमें पुरुषग्रह पुरुषको और
। स्त्री ग्रह स्त्रीको भी ग्रहण करते हैं ॥ ५ ॥ कोई मारनेके लिये, कोई वैरके कारणसे घातके लिये, तथाः । शेष ग्रह अन्य कारणोंसे, पुरुषको पकड़ते हैं ॥२॥
दिव्य पुरुष ग्रहोंके लक्षण ___ग्रहोंके भेद
देवो नागो यक्षो गंधर्वो ब्रह्म राक्षसश्चैव । तेऽपि ग्रहा द्विधास्यु दिव्यादिव्यग्रहप्रिभेदेन ।
भूतो व्यंतर नामेति सप्त पुरुष ग्रहास्तेस्युः ॥ ६ ॥ दिव्याश्चापि द्विधा पुरुषस्त्रीग्रहविभेदेन ॥
अर्थ-देव, नाग, यक्ष, गंधर्व, ब्रह्म, राक्षस, भूत, और ___ अर्थ-वह ग्रह दो प्रकारके होते हैं-दिव्य और व्यंतर, यह सात पुरुष ग्रह होते हैं ॥६॥ अद्विव्य, उनमेंसे दिव्य ग्रहोंके भी दो भेद होते हैं-पुरुष ग्रह।
'देवः सर्वत्रशुचिर्नागः शेते भनक्ति सर्वांगं । तथा स्त्री ग्रह।
क्षीरं पिबति च नित्यं यक्षो रोदिति हसति बहुधा ॥७॥