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मालिनी कल्प
अर्थ-उसके पश्चात् ज्वालामालिनीदेवीके मतका यह देवीकी आज्ञासे उस मुनिराजके शिष्य गांग मुनि नील श्रीव और विजाब्ज ॥ २२ ॥
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भार्याक्षान्तर सम्बा विरुवडः क्षुल्लक स्तथेत्यनया । गुरु परिपाट्या विचेनसम्प्रदायेन वागच्छत् ॥ २३ ॥
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अर्थ — भाक्षान्तर सब्ब तथा विरुवट्ट नामके क्षुल्लक के पास इस प्रकार गुरु परिपाटीसे नष्ट न होकर सम्प्रदायसे आया ।। २३ ।।
कंदर्पेण ज्ञातं तेनापि स्वनुत निर्विशेषाय ।
गुणनंदि श्री मुनये व्याख्यातं सोपदेशं तत् ॥ २४ ॥
अर्थ — इसके पश्चात् इसका ज्ञान कंदर्प नामके मुनिको हुआ और उन्होंने इसका व्याख्यान उपदेश सहित अपने शिष्य नंदिके सामने किया ॥ २४ ॥
पार्श्वे तयोर्द्धयोरवि तच्छाख ग्रंथतोऽर्थतथापि । मुनिनेन्द्रनन्दिना काय सम्यगीडितं विशेषेण ॥ २५ ॥
अर्थ- उन दोनों के पास इंद्र नंदि नामके मुनिने उस arrat ग्रंथरूपसे तथा अर्थरूपसे भली प्रकार पड़कर विशेषः रूपसे कहा ||२५||
प्रथमपरिच्छेद -
क्लिष्टं ग्रंथ प्राक्तन शास्त्र' तदेति स्वचेतसि निधाय । नेन्द्रनंदिमुनिना ललितार्या वृतगीताद्यैः ॥ २६ ॥
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अर्थ- प्राचीन शास्त्र बड़ा क्लिष्ट ग्रंथ है। अपने मनमें यह सोचकर उस इंद्रनंदि मुनिने सुन्दर आर्या गीति आदि छन्दोंसे ॥ २६ ॥
लाचार्योकार्थं ग्रंथपरावर्तनेन रचितमिदं । सकलजगदेव विस्मय जगतिजनहितकरं शृणुत ॥ २७ ॥
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अर्थ -- हेलाचार्यकी प्रशंसा के वास्ते संपूर्ण जगतको आश्चर्य करनेवाला तथा संसारके प्राणियोंका हित करनेवाला यह शास्त्र उस प्राचीन शास्त्र के बदले में बनाया इसे सुनो।
ग्रन्थकी अनुक्रमणिका
मंत्र सन्मुद्रा मण्डल कटुतैलजंत्रवश्यसुतंत्रं । स्नपनविधिर्नीराजनविधिरथ साधनविधि वेति ॥ २८ ॥
अर्थमंत्री ग्रह, बीजाक्षर विधान, मंडल, कम्पन तैल,. वश्ययंत्र, वश्यतंत्र, वसुधारा स्नान विधि, नीराजन विधि, और साधन विधि |
अधिकारादेषां दश चिदात्मनां स्वरूपनिर्देशं । संक्षेपात्प्रकटं, देव्या यथोद्दिष्टं ।। २९ ।।