SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यायामानी कल्प। हिर SINHARIHARANAINMamtaemonymwwANINomurasana पथम परिच्छेद। जप करना चाहिये। और दश सहस्र (अयुत) हवन करके अपने कार्यको पूर्ण करना चाहिये । ऐसा कहकर वह देवी अपने स्थानको चली गई ॥ १९॥ तत्र स्थित एवं ततस्तमसौ बंदह्यमानमाध्याय । दहनाक्षररुदन्तं दुर्ट निघोटयामास ॥२०॥ राजने फिर उस देवीसे कहा-"मैं इसकी विधिको नहीं जानता हूँ" अतएव आप मुझको इसकी पूर्ण विधिको कहें। तस्मै तया ततस्तव्याख्यातं, सोपदेशमथ तत्वं । पुनरपि तद्भक्तिवशाददामि तसिद्ध विद्युत्थं ॥ १६ ॥ तब उस दवान उपदेश सहित उस तत्वको मनिको बतलाया और कहा-"उस सिद्ध विद्याको मैं तुम्हारी भक्तिके वशसे फिर भी देती हूँ। साधनविधिना यस्मै, त्वं दास्यसि होमजपविहीनोऽपि । भविता ससिद्ध विद्या, नोदास्यसि यस्यसोऽत्र पुनः ॥१७॥ अर्थ-तुम हवन तथा जपसे रहित हो जानेपर भी साधन विधिसे जिसको भी दोगे यह विद्या उसको ही सिद्ध हो जावेगी और जिसे न दोगे उसको सिद्ध न होगी ॥ १७॥ उद्यान वने रम्ये जिन भवने, निम्नगा तटे पुलिने। गिरिशिखरेऽन्य स्मिन्वा स्थित्वा, निर्जन्तुके देशे ॥१८॥ अर्थ-उद्यान, सुन्दर बन, जैन मंदिर, नदीका किनारा, या पासका प्रदेश, पर्वतके शिखर पर अथवा किसी अन्य एकांत स्थानमें स्थित होकर ॥१८॥ प्रजाप्य नियतं तथा युतं हुत्वा प्रकरोतु । प्रकरोतु पूर्वसेवां प्रणिगौवं स्वधामगता ॥ १९ ॥ INR अर्थ-तब उस मुनिने वहां बैठे-बैठे ही उस पीडा देनेवाले तथा दहन करनेवाले अक्षरोंके बेगसे रोनेवाले दुष्ट ब्रह्मराक्षसको दूर कर दिया ॥ २०॥ निर्घाटितो ग्रहश्चेद्यात्वेक, स्वदहन रररर बीजं । शेष दश निग्रहाणां किमस्त्य, साध्यो ग्रहः कोऽपि ॥ अर्थ- जब जलानेबाले प्रबल बीजाक्षरोंसे एक ऐसा ग्रह दूर हो गया तो फिर शेष दश ग्रहोंमें से किस ग्रहको दूर करना -कठिन हो सकता है ? अर्थात् सभी दूर किये जा सकते हैं ॥२१॥ ग्रंथकी गुरु परम्परा देच्यादेशाच्छावं तत्पुनालिनीमतंततश्चेदं। तच्छिष्यो गाङ्गमुनिीलग्रीवो विजाब्जयो॥ २२॥ हवन दशांश होता है। जब दश हजार हवन है, तो जप एक लाख करना चाहिये।
SR No.009957
Book TitleJwala Malini Kalpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy