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________________ सम्पादकीय युवक-युवतियाँ और नयी बहूएँ अगर जैनिझम के अभ्यास के प्रवाह में शामिल होना चाहते है, तो पाठ्यक्रम और परीक्षा के स्वरूप में परिवर्तन लाना अत्यंत आवश्यक है । सन्मति-तीर्थ पिछले आठ सालों से इसी कालानुरूप परिवर्तन से जुटी हुई है। 'जैनॉलॉजी-परिचय' इस धारा की चौथी किताब विद्यार्थीवर्ग के सामने लाते हुएहम सार्थ गौरव की अनुभूति कर रहे हैं। ___ “जैनॉलॉजी के पाठ्यक्रम में, प्राकृत व्याकरण और साहित्य का समावेश करना”-सन्मति-तीर्थ संस्था की खासियत है । जैनॉलॉजी परिचय के पहले तीन सालों में प्राथमिक प्राकृत व्याकरण की पहचान करायी । चौथे सल में एक कदम आगे बढ़ते हए. प्राकत के दो पाठ दिये हैं। दोनों पाठ अलग-अलग दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। __पूरे जैन समाज की एकता की ओर अगर हमें अग्रेसर होना है तो पहली आवश्यकता है कि जैनियों के सारे संप्रदाय, उपसंप्रदाय, पंथ और संघों की हम जानकारी रखें, उनकी मान्यताएँ निरखें, परखें ! इसी हेतु इस किताब में संप्रदाय-भेदोंपर आधारित पाठ की रचना प्रयासपूर्वक की है। षड् द्रव्य और नौ तत्त्व - जैन तत्त्वज्ञान की आधारशिला है । इन सबकी परिभाषाएँ संक्षिप्त लेकिन परिपूर्ण रूपसे देने का प्रयास इस किताब में किया है। 'जैनॉलॉजी-परिचय' के समस्त केंद्रों के विद्यार्थी एवं उन्हें प्रेरणा देनेवाली शिक्षिकाओं का हम तहे दिल से अभिनंदन करते हैं। सन्मति-तीर्थ संस्था के अध्यक्ष डॉ. अभयजी फिरोदिया के अमूल्य सहयोग एवं आशीर्वाद से संस्था उत्तरोत्तर कामयाबी हासिल करने में अवश्य सफल होगी !! डॉ. नलिनी जोशी मानद सचिव, सन्मति-तीर्थ
SR No.009955
Book TitleJainology Parichaya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2012
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size254 KB
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