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के बाहर प्रदक्षिणा भूमि में पश्चिम दिशा से शुरु करते हुए वि.सं. १२८७ में प्रतिष्ठा किए हुए नंदीश्वर द्वीप का पट, जिनप्रतिमायें, पद्मावती की मूर्ति, सम्मेतशिखरजी तीर्थ का पट, शत्रुजय महातीर्थ का पट, श्री नेमिनाथ जीवन चरित्र का पट, श्री महावीर प्रभु की पाटपरंपरा की चरण पादुका, जिनशासन के विविध अधिष्ठायक देव-देवी की प्रतिमा, शासन देवी अंबिका की देवकुलिका, श्री नेमिनाथ तथा श्री महावीर प्रभु की चरण पादुका, श्री विजयानंद सूरि (पू. आत्मारामजी) महाराज की प्रतिमा आदि स्थापित की गयी है।
प्रदक्षिणा भूमि के एक कमरे में श्री आदिनाथ भगवान, साध्वी राजीमतीश्री आदि की चरण पादुका तथा गिरनार तीर्थ का जीर्णोद्धार करनेवाले प.पू. आ. नीतिसूरि महाराज की प्रतिमा बिराजमान है। उसी कमरे में एक भूगर्भ में मूलनायक के रूप में संप्रतिकालीन, प्रगट प्रभावक अत्यन्त नयनरम्य श्री अमिझरा पार्श्वनाथ भगवान की ६१ इंच की श्वेतवर्णी प्रतिमा बिराजमान है। प्रभुजी की मुखमुद्रा निहारते हुए ध्यानमग्न बन जाते हैं। प्रभुजी के हाथ के नाखून की अत्यन्त नाजुक कारीगरी दर्शनार्थियों के मन को हर लेती है। (ii) जगमाल गोरधन का जिनालय : [श्री आदिनाथ भगवान - ३१ इंच] श्री नेमिनाथ भगवान के मुख्य जिनालय के ठीक पीछे श्री आदिनाथ भगवान का जिनालय है । इस जिनालय की प्रतिष्ठा पोरवाड ज्ञातीय श्री जगमाल गोरधन द्वारा आ. विजयजिनेन्द्रसूरि महाराज साहेब की पावन निश्रा में वि.सं. १८४८ वैशाख वद - ६ शुक्रवार के दिन करवायी गयी थी। श्री जगमाल गोरधन श्री गिरनारजी तीर्थ पर जिनालय के मुनिम का कर्तव्य निभाकर जिनालयों के संरक्षण का कार्य करते थे। उनके नाम पर जूनागढ़ शहर के उपरकोट के पास के चौक का नाम जगमाल चौक रखा गया था ।
श्री नेमिनाथजी ढूंक की प्रदक्षिणा भूमि से उत्तर दिशा की तरफ के द्वार से बाहर निकलते हुए अन्य ढूंक के जिनालयों में जाने का मार्ग आता है। उसमें सर्व प्रथम काले पाषाण की ऊँची-ऊँची सीढियाँ उतरते हुए बायीं तरफ मेरकवशी की ट्रंक
आती है।
(२) मेरकवशी की ढूंक :
मेरकवशी की ढूंक के मुख्य जिनालय में प्रवेश करने से पहले दायें हाथ की तरफ 'पंचमेरु' का जिनालय आता है।