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________________ जब प्राण वनसे निकले... शिशिरऋतु की मंगलप्रभात का वह समय था । वादिवेताल प.पू. शांतिसूरि महाराज साहेब थारापदपुर तरफ विहार करके गाँव में पहुंचे थे। श्रावकजनों के अतिआग्रह से व्याख्यान का आयोजन किया गया था। व्याख्यान के अवसर पर श्री नागिनी नाम की देवी नत्य करने लगी । तब उस देवी को योग्य स्थान में बिठाने के लिए आचार्य भगवंत द्वारा मंत्रित वासक्षेप डालने पर उस देवी ने योग्य स्थान ग्रहण कर लिया । इस प्रकार जब कभी भी वह देवी नृत्य करने लगती तब उसे अयोग्य स्थान से उठाकर योग्य स्थान पर बिठाने के लिए आचार्य भगवंत वासक्षेप डालते, परंतु एकबार कोई कारणवश विस्मरण होने से आचार्य भगवंत नृत्य करती हुई उस देवी को बिठाने के लिए अथवा अन्यत्र गमन के लिए वासक्षेप डालना भूल गए । निरंतर घुमते हुए इस कालचक्र को कौन रोक सकता है ? उस दिन सुबह का समय व्यतीत हुआ.... मध्याह्नकाल... संध्याकाल भी बीत गया और रात्रि के समय जब आचार्य भगवंत परमात्मध्यान में लीन होने का प्रयत्न कर रहे थे, उसी समय आचार्य भगवंत के शुभ हाथों से वासक्षेप नहीं पड़ने से देवी को सुबह से ही हवा में आधार बिना खड़ा रहना पड़ा था। इसलिए आचार्यभगवंत को उपालंभ (ठपका) देने के लिए वह उपाश्रय में प्रवेश करती हैं। परमात्म ध्यान में लीन होकर आंतरप्रकाश को पाने के लिए प्रयत्न कर रहे आचार्य भगवंत की साधना के स्थान पर अचानक दिव्यप्रकाश का पूंज प्रवेश करता है। इस दिव्यप्रकाश के पूंज के साथ-साथ अत्यंत रुपवान आकृति को प्रवेश करते हुए देखकर आचार्यभगवंत प्रवर्तक मुनि को पूछते हैं, हे मुनिवर ! क्या यहा पर किसी रमणी का प्रवेश हुआ है? तब महात्मा कहते हैं कि, हे गुरुदेव ! मैं नहीं जानता । उस समय अत्यंत देदीप्यमान स्वरूपवाली वह देवी कहती है कि आप कृपालु द्वारा वासक्षेप नहीं पड़ने से इस तरह ऊचे लटकते हुए मेरे चरणकमल में अत्यंत पीडा हो रही है। आप जैसे विशिष्ट श्रुतज्ञानी को भी विस्मरण हुआ और मुझपर वासक्षेप डालना चूक गए ! इस लक्षण से आप कृपालु का आयुष्य अब छ महीने से ज्यादा नहीं है। ऐसा मुझे मेरे ज्ञानबल से स्पष्ट समझ में आ रहा है। इसलिए महागीतार्थ ऐसे आपश्री का, समस्त गच्छ की भावि व्यवस्था कोई योग्य आत्मा को सोंपकर, आत्मसाधना में लीन होने का अवसर आ चुका है। यह निवेदन करने के लिए आज मैं यहाँ उपस्थित हुई हूँ। ऐसे दिव्यवचन बोलकर वह दिव्याकृति अंतर्ध्यान होती है। दूसरे दिन सुबह परम पूज्य आचार्य भगवंत ने अपने गच्छ के महात्माओं को इकट्ठा किया। साथ में सकल श्री संघ ८४
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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