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________________ (श्री जिनेश्वर परमात्मा वर्धमान स्वामी को किया हुआ एक भी नमस्कार इस संसार सागर से पुरुष-स्त्री आदि को तार देता है।) उज्जितसेलसिहरे दीक्खा नाणं निसीहिया जस्स तं धम्म चक्कवट्टि अरिट्टनेमि नमसामि ॥२॥ (उज्जयंत पर्वत के शिखर पर जिनके दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष कल्याणक हुए हैं, ऐसे धर्मचक्रवर्ती श्री अरिष्टनेमि भगवंत को मैं नमस्कार करती हूँ।) ये गाथाएँ सुनकर विचक्षण ऐसे आचार्य भगवंत आदि के चेहरे पर आनंद की लहर छा गई । सामनेवाला पक्ष गाथा के रहस्य तथा अर्थ को समझने के लिए असमर्थ होने से चिंतित हुआ। तभी आचार्य बप्पभट्टसूरिजी ने अत्यंत गंभीरतापूर्वक कहा कि, "हे राजन् ! हमारे पक्ष की ऐसी मान्यता है, कि स्त्री, पुरुष और नपुंसक हर एक को मोक्ष प्राप्त करने का हक है। जब हमारा विरोधी पक्ष तो स्त्री मुक्ति का स्वीकार करता नहीं। इस बालकन्या के स्वरुप में शासनदेवी ने प्रथम चरण में स्पष्ट कहा है कि "वर्धमान स्वामी को किया हुआ एक भी नमस्कार स्त्री और पुरुष को तारता है।" यह चरण हमारे मत को संपूर्णत: पुष्ट करता है। इसलिए इस तीर्थ के अधिकार के लिए शासनदेवी ने भी मुहर-छाप लगा दी है और इस गिरनार के हक की समस्या का समाधान हो गया है।" मध्यस्थों ने भी आचार्य भगवंत के वचनों को सहर्ष स्वीकार किया। और श्वेतांबर पंथ को विजयी घोषित किया। विजयी होने के साथ ही गिरनार गिरिवर की तलहटी श्री नेमिनाथ परमात्मा के जयघोष के साथ गूंज उठी ।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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