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से तप किए ? दान दिया ? तीर्थ भक्ति की? या अन्य कोई सुकृत किए ? कि जिसके प्रभाव से आप इस व्यंतरलोक की दिव्य देवांगनाओं से भी पूजा योग्य हमारी स्वामीनी बनी हो?" इस तरह देव के वचन सुनकर अंबिका देवी ने अवधिज्ञान के उपयोग से अपना पूर्वभव जानकर सारा वृत्तांत बताया और जैनधर्म के महान उपकारों का स्मरण करते हुए आभियोगिक देवों द्वारा रचित देवविमान द्वारा सभी दिशाओं को प्रकाशित करती हुई रैवतगिरि में सहसावन के रमणीय स्थान में आयी ।
उस समय मयुर के मधुर केकारव और कोयल के टहुंकार से गूंजते हुए सहसावन के उद्यान में "वेतस" वृक्ष के नीचे अट्टम तप सहित कायोत्सर्ग में स्थिर श्री नेमिप्रभु के सर्वधाती कर्म के बंधन टूटे। और आसोज वद अमावस (गुजराती भाद्रवा वद अमावस) की अंधेरी रात में चंद्र के चित्रा नक्षत्र के योग में श्री नेमिनाथ प्रभु को घनघाती कमों के अंधकार को भेदनेवाले केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । स्व आचार के अनुसार करोडों देवताओं ने समवसरण की रचना की । १२० धनुष ऊचे चैत्यवृक्ष के नीचे रचित सिंहासन पर प्रभु "नमो तित्थस्स" कहकर आरूढ हुए। अन्य तीन दिशाओं में व्यंतर देवों ने साक्षात् प्रभु की प्रतिकृति स्वरूप प्रभु के तीन बिंब स्थापित किए । समवसरण के रजत, सुवर्ण और रत्नमय तीन गढ़ में सर्व जीवों ने परमात्मा को वंदन कर यथायोग्य स्थान ग्रहण किया। साथ ही अंबिका देवी ने भी अपना स्थान ग्रहण किया । चतुर्विध संघ के साथ तिर्यंच जीव भी प्रभु की देशना सुनने के लिए उत्सुक बने । बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ प्रभुने प्रथम देशना प्रारंभ की
"धों जगद्वन्धुरकारणेन, धर्मो जगद्वत्सल आतिहर्ता ।
क्षेमंकरोऽस्मिन् भुवनेऽपि धर्मो, धर्मस्ततो भक्तिभरेण सेव्यः ।" जगत में धर्म कारण बिना का बंधु है, धर्म जगत् वत्सल है, धर्म पीडाओं का नाश करनेवाला है, इस भुवन में क्षेमंकर अर्थात् सबको संभालनेवाला है, इसी कारण से सब को अत्यन्त भक्तिपूर्वक धर्म का सेवन करने योग्य है।"
"सम्यक्त्व धर्मरुपी कल्पवृक्ष का बीज है, धर्म का पालन करने के लिए यथाशक्ति उद्यम करना धर्म का स्कन्ध है। सुपात्रदान, अखंड शीलपालन, यथाशक्ति तपाचरण और शुभभाव ये धर्म की चार शाखाएँ हैं।
सुवासना, कोमलता, अनुकंपा, आस्तिक्यादि धर्म वृक्ष के पत्ते हैं। सिद्धाचल, रैवताचलादि तीर्थसेवा, जिनपजा. सदगरुसेवन और पंचपरमेष्ठि मंत्र पद ये धर्म वृक्ष की अग्रशाखा के पुष्पांकुर हैं। स्वर्गादि सुख धर्मवृक्ष के पुष्प हैं और मोक्ष सुख धर्मवृक्ष का फल है।
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