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________________ श्री साधु भगवंत की मुझे शरण हो ! श्री जिनप्रणीत धर्म की मुझे शरण हो ! द्विज, दरिद्री, कृपण, भील, म्लेच्छ कलंकी और अधमकुल में, उसी तरह अंग, बंग, कुरु, कच्छ और सिंधु आदि अनार्य देश में मेरा जन्म न हो ! याचकता, मूर्खता, अज्ञानता, कृपणता, मिथ्यात्व, सेनापतित्व, विष, अस्त्र तथा मद्यादिरस पदार्थों का व्यापार और प्राणियों की खरीदी-बिक्री मुझे भवांतर में कभी प्राप्त न हो ! इस मुनियुगल के सुपात्रदान के प्रभाव से देव- गुरु और धर्मरत्न को जाननेवाले, देव को पूजनेवाले, दातार, अधिकारी, धनाढ्य और हितअहित का विवेक करनेवाले ऐसे कुल में तथा सौराष्ट्र, मगध, कीर, काश्मीर और दक्षिण दिशा के देश में मेरा जन्म हो ! धनाढ्यता, उदारता, आरोग्यता और इन्द्रिय संपन्नता मुझे प्राप्त हो । इस तरह मनोरथों के मिनार पर आरोहण करतेकरते अंबिका दोनों बालकों के साथ कुएँ में गिरी और तुरन्त मरकर अनेक ऋद्धिमान व्यंतर के समुह द्वारा सेवा योग्य व्यंतर जाति में देवी के रूप में उत्पन्न हुई। "हे अंबिका ! हे प्रिया !" इस तरह बोलता हुआ सोमभट्ट दौड़कर कुएँ के किनारे पर आया। तब तक अंबिका दोनों बालकों के साथ कुएँ में गिरकर मर चुकी थी। अंबिका और दो बालकों को मृत अवस्था में देखकर सोमभट्ट विचार करता है कि "मेरे जैसे मूर्ख को धिक्कार हो! मैं कैसा दुष्ट हूँ ! साक्षात् लक्ष्मी समान पत्नी और राजकुमार समान दो पुत्रों को घर से निकाल दिया। इन तीनों की मृत्यु के बाद मेरे जीने का क्या अर्थ ? अब तो मुझे भी मृत्यु ही शरण है' ऐसा सोचकर सोमभट्ट भी अंबिका का ध्यान करते-करते कुएँ में गिरा । अंत समय में अंबिका का ही स्मरण होने के कारण सोमभट्ट पुण्यसंयोग से मरकर अंबिका देवी के वाहन रूप सिंह स्वरुपी देव बना । मंगलप्रभात के सूर्य जैसी सुवर्णकांतिवाले देह को धारण करनेवाली, जिसके देह की प्रभा समस्त देवलोक की दिशाओं में फैल गयी है, वनकेसरी सिंहवाहन पर आरूढ, सर्व अंगों से सुन्दर, बहुमूल्यवान मणिसुवर्ण-रत्न आदि आभूषणों से विभूषित, अनेक देव-देवीयों के द्वारा जिसकी उपासना की जाती है, एक बालक गोद में और एक बालक पास में खड़ा है इस तरह दो बालकों से अलंकृत, चार भुजाधारी - जिन में दायें दोनों हाथों में पाश और बायें दोनों हाथों में आम्र की लुंब धारण करनेवाली प्रवीण वाणीवाली, ऐसी अचिन्त्य प्रभावशाली अंबिका देवी को एक देव ने पूछा, "हे स्वामिनी ! पूर्वभव में आपने ऐसे कौन DODOO
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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