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________________ ८. गिरनार महातीर्थ की भक्ति द्वारा श्री नेमिनाथ भगवान के रहनेमि सहित आठ भाई, शांब, प्रद्युम्न आदि अनेक कुमार, कृष्ण महाराजा की आठ पट्टरानियाँ, साध्वी राजीमतिश्रीजी आदि अनेक भव्यत्माओं ने मोक्षपद प्राप्त किया है। कृष्ण महाराजा ने तो तीर्थभक्ति के प्रभाव से तीर्थंकर नामकर्म बाधा है। इसलिए उनकी आत्मा आनेवाली चौबीशी में बारहवें तीर्थंकर श्री अमम स्वामी बनकर मोक्षपद प्राप्त करेगी। ९. गिरनार महातीर्थ तथा नेमिनाथ भगवान के प्रति अत्यंत राग के प्रभाव से, धामणउल्ली गाँव के धार नामक व्यापारी के, पाँच पुत्र १) कालमेघ, २) मेघनाद, ३) भेरव, ४) एकपद और ५) त्रैलोक्यपद ये पांचों पुत्र मरकर तीर्थ में क्षेत्राधिपति देव बने । १०. स्वर्गलोक, पाताललोक और मृत्युलोक के चैत्यों में सुर, असुर और राजा गिरनार के आकार को हमेशा पूजते हैं । ११. वल्लभीपुर के भंग होने से ईन्द्रमहाराजा ने स्थापित किए हुए श्री नेमिनाथ भगवान के बिंब की रत्नकांति गिरनार में लुप्त करने में आई थी। वह मूति आज गिरनार में मूलनायक के स्थान पर बिराजमान है। १२. गिरनार महातीर्थ में विश्व की सब से प्राचीन मूलनायक रूप में विराजमान श्री नेमिनाथ भगवान की मूर्ति लगभग १,६५,७३५ वर्ष न्यून (कम) ऐसे २० कोडाकोडी सागरोपम वर्ष प्राचीन है। जो गत चौबीशी के तीसरे सागर नामक तीर्थंकर के काल में ब्रह्मेन्द्र द्वारा बनाई गयी थी। इस प्रतिमाजी को प्रतिष्ठित किये लगभग ८४,७८५ वर्ष हुए हैं। मूर्ति इसी स्थान पर आगे लगभग १८,४६५ बर्ष तक पूजी जायेगी। उसके बाद शासन अधिष्ठायिका द्वारा पाताललोक में ले जाकर पूजी जायेगी। १३. गिरनार पर इंद्र महाराजा ने वज्र से छिद्र करके सोने के बलानक झरोखेवाले चाँदी के चैत्य बनाकर, मध्यभाग में श्री नेमिनाथ परमात्मा की चालीस हाथ ऊँचाईवाली श्यामवर्ण रत्न की मूर्ति स्थापित की थी। १४. इंद्रमहाराजा ने पहले बनाया था, वैसा पूर्वाभिमुख जिनालय श्री नेमिनाथ भगवान के निर्वाण स्थान पर भी बनाया था । १५. गिरनार में एक समय में कल्याण के कारण स्वरूप छत्रशिला, अक्षरशिला, घंटाशिला, अंजनशिला, ज्ञानशिला, बिन्दुशिला और सिद्धशिला आदि शिलाएँ शोभित थीं। १६. जिस प्रकार मलयगिरी पर दूसरे वृक्ष भी चंदनमय बनते हैं, उस प्रकार गिरनार पर आनेवाले पापी प्राणी भी पुण्यवान बन जाते हैं।
SR No.009951
Book TitleChalo Girnar Chale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size450 KB
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