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रहस्य समझ में नहीं आता है, परन्तु पूर्व कोई काल में वहाँ मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथ होने की संभावना है। इस जिनालय के अंदर के पबासण के चारों कोने मे समकोण स्तंभ के प्रत्येक स्तंभ में २४-२४ प्रतिमायें इस तरह कुल ९६ प्रतिमायें खोदी हुई हैं । ये चार स्तंभ चौरी के समान दिखने के कारण इस जिनालय को 'चौरीवाला जिनालय' भी कहा जाता है ।
वि.सं. २०५८ के दौरान चतुमुर्खजी का लेप हुआ तब भूल से मूलनायक श्री नेमिनाथ तथा बाकी के तीन भगवान में श्री चंद्रप्रभस्वामी के लंछन किए गए हैं।
इस चौमुखी जिनालय से आगे लगभग ७०-८० सीढियाँ चढ़ने पर बायीं तरफ सहसावन श्री नेमिनाथ भगवान की दीक्षा-केवलज्ञान कलयाणक भूमि की तरफ जाने का मार्ग आता है, और दायीं तरफ १५-२० सीढियाँ चढने पर 'गौमुखीगंगा' नामक स्थान आता है।
गौमुखी गंगा :
श्री गौमुखीगंगा में प्रवेश करते ही हिन्दु संप्रदाय के देव-देवी की प्रतिमा की देवकुलिका आती है। वहाँ से दायीं तरफ नीचे जाने के लिए सीढियाँ उतरकर बायीं तरफ आगे चौबीस तीर्थंकर परमात्मा की चरणपादुकायें एक देवकुलिका में स्थापित की गयी हैं। प्रत्येक चरणपादुका के आगे तीर्थंकर भगवान के नाम खोदे हुए हैं। इस गौमुखीगंगा के स्थान का संचालन अभी हिन्दु संप्रदाय के सन्यासियों के द्वारा किया जाता है। परन्तु इन चरणपादुकाओं की पूजादि शेठ देवचंद्र लक्ष्मीचंद पेढी के द्वारा ही की जाती है। (१४) रहनेमि का जिनालय : [श्री सिद्धात्मा रहनेमिजी - ५१ इंच]
गौमुखीगंगा के स्थान से लगभग ३५० सीढियाँ ऊपर चढने पर दायीं तरफ रहनेमि का जिनालय आता है। इस जिनालय के मूलनायक सिद्धात्मा श्री रहनेमि की श्यामवर्णी प्रतिमा बिराजमान है। ५-६ वर्ष पहले इस प्रतिमा का लेप किया गया था। अखिल भारत में प्राय: एकमात्र यही जिनालय है जहाँ अरिहंत परमात्मा न होते हुए भी सिद्धात्मा श्री रहनेमि की प्रतिमा मूलनायक के रूप में बिराजमान है।
श्री रहनेमि बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ परमात्मा के छोटे भाई थे। जिन्होंने दीक्षा लेकर गिरनार की पवित्र भूमि में संयमसाधना करके, अष्टकर्म का क्षय कर, सहसावन में केवलज्ञान और मोक्षपद प्राप्त किया था ।