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(५८) समयसारदृष्टान्तमर्म आदिके अनेक अतिशयोंने जिनशासनकी प्रभावना की ।रलत्रयकी प्राप्ति अतीव दुर्लभ है । इसके ही प्रसादसे कर्मोकी निर्जरा होती है। संवर पूर्वक निर्जरा मोक्षतत्त्वका कारण है। रत्नत्रयके विपरीत भावमें याने मिध्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्रकी वर्तनामें कर्मवन्ध है, यह संसारका कारण है। अतः संसारके कारणोंसे हटकर मोक्षमार्गके लगनेके परिणाममें यत्ल करना चाहिये याने शुद्धात्माका आश्रय करना चाहिये।
इति निर्जराधिकार समाप्त
वन्धाधिकार १६६-कर्मबन्धका कारण क्या है और वह कैसे मिटे ? यह रहस्य नानना बहुन आवश्यक चीज है। यहां कर्मवन्धके कारणको एक दृष्टान्त द्वारा प्रकट किया जाता है। जैसे एक मल्ल अपने शरीरमें तेल लगाकर हाथमें तलवार लेकर शस्त्राभ्यासके लिये धूलवाले अखाड़े में कूदता है
और वहां कदली आदि पेड़ोंका तलवारमे घात करता है। कुछ समय इस व्यायाम कर लेनेपर उसके देहमें धूल बहुतसी चिपट जाती है। यहां विचार करें कि उस मल्लके देहमें धूल असनमें किस कारणमे चिपट गई । इसी प्रकार विचार करने के लिये शान्तिका दृष्टिकोण लेवे। यह मंसारी जीव रागादिमें उपयोग लगाकर मन, वचन. कायका योग करके बाह्य माधनोंक आश्रयसे कार्माणवर्गणाओंकरि व्याप संसारमें सचित्त अचित्त परिग्रहका संग्रह, संहार करता है और परिणाम स्वरूप कर्ममे बंध जाना है। अब यहां विचार करें कि क्या (१) सचित्तादि पदार्थोका संहारादि किया इससे कर्म बंधा ? (0) क्या बाह्य साधनोंके कारण कर्म बंधा ? (३) क्या मन वचन कायके योगसे कर्म बंधा (४) क्या कार्माणवर्गणाओंसे भरे संसारमें रहने के कारण कर्म बंधा ? जैसे कि दृष्टान्त में पचा हो सकता है कि (१) क्या कदली आदि वृक्षोंका पात होनेसे देहमें