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वाधिकार
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भूत ज्ञानावरण कर्मके उदयसे प्रकट नहीं हो पाता । जैसे कि श्व ेत वस्त्र का स्वच्छत्व स्वभाव है तो भी परभावभूत मलके आने से वह प्रकट नही हो पाता ।
१३३ - ज्ञानका चारित्र भी मोक्षका हेतु है । यह स्वभाव भी चारित्र मोह कर्मके उदयसे प्रकट नहीं हो पाता । जैसे कि श्व ेत वस्त्रका स्वभाव स्वच्छता है, किन्तु परभावभूत मलके से प्रकट नहीं हो पाते । ये तीनों तत्त्व याने सम्यग्दर्शन, (ज्ञानका सम्यक्त्व), सम्यग्ज्ञान ( ज्ञानका ज्ञान), सम्यक्चारित्र ( ज्ञानका चारित्र) भिन्न भिन्न रूपमें मोक्षके कारण नहीं है, किन्तु एक रूप में मोक्षके कारण हैं । अतः अभेदविवक्षा में ज्ञान ही मोक्षका कारण है । इस ज्ञानके विकास के बाधक निमित्त सभी कर्म हैं । तः सभी कर्मोंका त्याग कर देना चाहिये । कर्मोंका त्याग यही है कि कर्म के हेतुभून जीवकर्म (विभाव) में व कर्म के फलभूत परिणाम में व इष्ट समागममे राग व संसर्ग न करे ।
इति पुण्यपापाधिकार समाप्त
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श्राखवाधिकार
१३४ -- पुण्य पापके आस्रव (आने) का कारण राग, द्वेष, मोह, भाव है । इन दोनो प्रकारके याने कर्मास्रव व जीवास्रव (रागादिभाव ) का निरोध ज्ञानभाव से होता है | ज्ञानभाव के अभाव में अज्ञानमय भाव होता है, जो राग, द्वेष, मोह, भावके सम्पर्क में भाव होता है, वह सब अज्ञानम भाव है । यह अज्ञानमय भाव श्रात्माको कर्म करनेके लिये प्रेरित करता है । जैसे कि चुम्बक पत्थरके सम्पर्क में जायमान प्रभाव लोहेकी सूचीको कपित होने को प्रेरित करता है ।
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१३४ - और, जैसे चुम्बक पत्थर हट जाय तो उस वियोगसे होने वाली स्थिति लोहेकी सूचीको स्थित रहने देती है । इसी प्रकार रागादि व से भिन्न स्वभावी चैतन्यमात्र आत्मा के विवेकसे होने वाला ज्ञानमय