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श्रीप्रवचनसारटीका ।
श्वास या १०८ श्वास तक शरीरका ममत्व त्याग जिनेन्द्रके गुणोंका चिन्तवन करना सो कायोत्सर्ग आवश्यक मूलगुण है । २२ लोय मूलगुण ।
वियतिक्कमासे लोचो उकस्समज्जिहण्णो । सडकमणे दिवसे उपवासेणेव कायव्वो ॥ २६ ॥
भावार्थ-दूसरे, तीसरे, चौथे मासमें उत्कृष्ठ, मध्यम, जघन्य रूपसे प्रतिक्रमण सहित व उस दिन उपवास सहित मस्तक ढाढ़ी मृछके केशोंका हाथोंसे उपाड़ डालना सो लोच मूलगुण है । २३ अचेलकत्व मूलगुण ।
वत्थाजिणवकेण य अहवा पत्तादिणा असं वरणं । णिभूषण णिग्गंथं अचेलकं जगदि पूज्जं ॥ ३० ॥
भावार्थ- वस्त्र, चर्म मृगछाला, वक्कल व पत्तों आदिसे अपने शरीरको नहीं ढंकना, आभूषण नहीं पहनना, सर्व परिग्रहमे रहित रहना सो जगतमें पूज्य अचेलकपना या नग्नपनी मूलगुण है। २४ अस्नान मूलगुण । हणादिवजणेण य विलितजलमल्लसेदसन्वंगं । अहाण धोरणं स' जमदुगपालयं मुणिणो ॥ ३१ ॥
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भावाथ - स्नान, श्रृंगार, उवटन आदिको छोड़कर सर्व अंगमें मल हो व एक देशमें मल हो व पसीना निकले इसकी परवाह न करके जीवदया हेतुसे व उदासीन वैराग्यभावके कारणसे स्नान न करना सो इंद्रिय व प्राण संयमको पालनेवाला अस्नान मूलगुण है । मुनियोंके स्नान न करनेसे अशुचिपना नही होता है क्योकि उनकी पवित्रता व्रतों पालनसे ही रहती है ।