________________
Mara
७२] श्रीप्रवचनसारटीका।
१५ स्पर्शनेन्द्रिय निरोध मूलगुण । जीवाजीवसमुत्थे कमडमउगादिअट्ठभेदजुदै । फासे सुहे य असुहे फासणिरोहो असंगोहो ॥ २१ ॥
भावार्थ-जीव या अजीव सम्बन्धी कर्कश. मृदु, शीत. उष्ण, रूखे, चिकने, हलके या भारी आठ भेद रूप शुभ या अशुभ स्पर्शके होनेपर उनमें इन्च्छा न करके रागद्वेप जीतना सो स्पर्गेद्रिय निरोध मूलगुण है।
१६ सामायिक आवश्यक मूलगुण । जीविद्मरणे लाहालाभे संजोयविप्पओगे य । संधुरिसुहदक्खादिसु समदा सामायियं णाम ॥ २३ ॥
भावार्थ-जीवन मरण. लाभ हानि. संयोन वियोग. मित्र शत्रु, सुख दुःख आदि अवस्थाओमें समता रखनी सो मामायिक आवश्यक मूलगुण है।
१७ चतुरविन्शति स्तव मूलगुण । उसहादिनिणवराणं णामणित्ति गुणाणुकित्ति न ! काऊण अच्चिदूण य तिसुद्धपणमो थओ णेओ ।। २४ ।।
भानार्थ-वृपयादि चौवीस तीर्थकोका नाम लेना. उनका शुणानुवाद गाना. उनको मन वचन काय शुद्ध करके प्रणाम करना व उनकी भाव पूजा करनी सो चतुर्विशतितव मूलगुण है ।
१८ वन्दना आवश्यक मूलगुण ।। अरहंतसिद्धपरिमातवसुदगुणगुरुगुरूण रादोणं ।
किदिकम्मेणिदरेण य तियरणसंकोचणं पणमो ॥ २५ ॥ , भावार्थ-अरहंत और सिद्धोंकी प्रतिमाओको, तपस्वी गुरुओंको, गुणोंमें श्रेष्ठोंको, दीक्षा गुरुओंको व अपनेसे बड़े दीर्घकालके