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६६ ] श्रीप्रवचनसारटीका।
साधुको बत्तीस अन्तरायोंको टालकर भोजन करना चाहिये ।
१ काक-खड़े होने पर या जाते हुए. (अनगार धर्मामृत टीकामें है कि सिद्धभक्ति उच्चारण स्थानसे अन्य स्थानमें भोजन करनेके लिये जाते हुए श्लोक ४३ व ५७) यदि कव्वा, कुत्ता आदिका भिष्टा अपने ऊपर पड़ जावे तो साधु फिर भोजन न करे, अन्तराय माने ।
२ अमेध्य-यदि साधुको पुरुषके मलका रपर्श होजावे तो अन्तराय करे ( यहांपर भी यही भाव लेना चाहिये कि. सिद्धभक्ति. करनेके पीछे खडे हुए या जाते हुए यह दोष संभव है ।) ___३ छर्दि-यदि साधुको सिद्धभक्तिके पीछे वमन होनावे तो अन्तराय करे।
४ रोधन-यदि साधुको कोई घरणक आदि ऐसा कहे कि भोजन मत करो तव भी साधु अन्तराय माने ।
५ रुधिर-यदि साधु अपना या दूसरेका खून या पीपको वहता हुआ देख लें, तो अन्तराय करें (अनगार धर्मामृतमें है कि चार अंगुल वहनेसे कमके देखनेमें अन्तराय नहीं)., . .
६ अनुपात-यदि साधुको किसी शोक भावके कारण आंसू आजावे तो अन्तराय करे । धूमादिसे आंसू निकलनेमें अन्तराय, नहीं तथा यदि किसीके मरण होनेपर किसीका रुदन सुनले तो भी अन्तराय है । ___७ जानुअधः आमर्श-यदि साधु सिद्धभक्तिके पीछे अपने, हाथोंसे अपनी जंघाका नीचला भाग स्पर्श करलें तो अंतराय करें।