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तृतीय खण्ड।
[६७ ८ जानपरिष्यतिक्रम-यदि साधुको अपनी जंघा प्रमाण बीचमें चौखट व काष्ठ पत्थरादि लांघकर जाना पडे तो साधु अंतराय करें ( यहां भी सिद्धभक्तिके पीछे भोजनको जाते हुए मानना चाहिये।
. ९ नाभ्यधोगमन-यदि साधुको अपनी नाभिके नीचे अपना मस्तक करके जाना पड़े तो साधु अन्तराय करें ।
१० प्रत्याख्यातसेवना-यदि साधु देव गुरुकी साक्षीसे त्यागी हुई वस्तुको भूलसे खा लेवें तो अन्तराय करें।
११ जन्तुबध-यदि साधुसे व साधुके आगे दूसरेसे किसी जन्तुका वध होनावे ( अनगार धर्मामृतमें है कि पंचेद्रिय जंतुका वध होजावे जैसे मारिद्वारा मूपक आदिका) तो साधु अन्तराय करें।
१२-काकादि पिंडहरण-यदि साधुके भोजन करते हुए उसके हाथसे काग व गृद्ध आदि ग्रासको ले जावें तो साधु अन्तराय करें।
१३ पाणिपिंडपतन-यदि साचुके भोजन करते हुए हाथसे ग्रास गिर पडे, तो अन्तराय करें। ।
। १४ पाणिजंतुवध-यदि साधुके भोजन करते हुए हाथमें स्वयं आकर कोई प्राणी मरजावे तो साधु अंतराय करें- .
' १५ मांसादि दर्शन-यदि साधु भोजन समय पंचद्रिय मृत प्राणीका मांस या मदिरा आदि निन्दनीय पदार्थ देखलें तो अंतरोय. करें। . १६ उपसर्ग-यदि साधुको भोजन समय कोई देव मनुष्ठ या पशुरूत या आकस्मिक उपसर्ग आजावे तो साधु भोजन तो।