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तृतीय खण्ड।
[५१ ८-एषणा समिति मूलगुण । । छादालदोससुद्धं कारणजुत्तं विसुद्धणवकोड़ो। . सीदादी समभुत्ती परिसुद्धा एषणासंमिदी ॥ १३ ॥
भावार्थ-भूख आदि कारण सहित छयालीस दोष रहित, मन, वचन, काय, कत, कारित, अनुमोदनाके ९ प्रकारके दोषोंसे शुद्ध शीत उष्ण आदिमें समताभाव रखकर भोजन करना सो निर्मल एषणा समिति है।
मुनि अति क्षुधाकी पीड़ा होनेपर ही गृहस्थने जो स्वकुटुम्बके लिये भोजन क्रिया है उसीमेंसे सरस नीरस टन्डा या गर्म जो भोजन मिले उसको ४६ दोष रहित देखकर लेते हैं।
वे ४६ दोष इस भांति हैं- . १६-उद्गम-दोष-जो दातारके आधीन हैं | . . १६. उत्पादन दोप-जो पात्रके आधीन हैं।. १०-भोजन सम्बन्धी शक्ति दोष हैं-इन्हें अशन दोष
भी कहते हैं। १-अङ्गारदोष, १ धूम दोष, १ संयोजन दोप, १ प्रमाण दोष। १६ उद्गम दोप इस भांति हैं
अधःकर्म-जो 'आहार गृहस्थने त्रस स्थावर जीवोंको बाधा -स्वयं पहुंचाकर ब बाधा दिलाकर उत्पन्न किया हो उसे अधः कर्म कहते हैं। इस सम्बन्धी नीचेके दोषं हैं
१-औद्देशिक दोष जो आहार.इस उद्देश्य से बनाया हों किजो कोई भी लेनेवाले आएंगे उनको दूंगा, व जो कोई अच्छे बुरे साधु