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तृतीय खण्ड। बड़े २ कष्ट सहनमें 'सहे जासक्ते हैं । एक लोभी मजूर ज्येष्ठकी "उष्णतामें नंगे पैर काठका बोझा लिये चला जाता है उस समय
पैसेके लोमने उसके मनको बढ़ कर दिया है। एक व्यापारी वणिक ‘धन कमानेकी लालसासे उप्णकालमें मालको उठाता धरता, वीनता
संवारता कुछ भी कष्ट नहीं अनुभव करता है क्योंकि लोभ कपान्यने उस समय उसके मनको दृढ़ कर दिया है । इसी तरह आत्मरसिक साधु आत्मानन्दकी भावनासे प्रेरित हो तपस्या करते हुए तथा शीत, घाम, वर्षा, डांस मच्छर आदि वाईस परीसहोंको सहते हुए भी कुछ भी कट न मालूम करके आत्मानन्दका स्वाद लेरहे हैं, क्योंकि आत्मलाभके प्रेभने उनके मनको दृढ़ कर दिया है।
जो कायर हैं वे नग्नपना धार नहीं सक्ते । वीरोंके लिये युद्धमें जाना, शत्रु द्वारा प्रेरित वाण--वर्पाका सहना तथा शत्रुका विजयपाना एक कर्तव्य कर्म है वैसे ही वीरोंके लिये कर्म शत्रुओंके साथ लड़नेको मुनिपदके युद्ध में जाना, अनेक परीसह व उपसर्गोका सहना. तथा कर्म शत्रुको जीतना एक कर्तव्य कर्म है। दोनों ही वीर अपने २ कार्य उत्साही व आनंदित रहते हैं।
नग्नपना धारना कोई कठिन बात भी नहीं है। हरएक कार्य अभ्याससे सुगम होजाता है । श्रावककी ग्यारह प्रतिमाओंका जो अभ्यास करते हैं उनको धीरे २ वस्त्र कम करते हुए ग्यारहवें पदमें एक चंदर और एक लंगोटी ही धारनेका अभ्यास हो जाता है । बस फिर साधु पहमें लंगोटीका भी छोड़ देना सहन होजाता है। जहां तक शरीरमें शीत उप्ण डांस मच्छर आदिके सहनेकी शक्तिन हो व लज्जा व कामभावका नाश न होगयां हो वहांतक