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श्रीप्रवचनसारटोका ।
भावार्थ- परीक्षक साधु छः आवश्यकके स्थानोंमें पीछीसे किस तरह व्यवहार करते हैं, किस तरह बोलते हैं, किस तरह 'पदार्थको रखते हैं और स्वाध्याय गमनागमन तथा भिक्षा ग्रहण में परीक्षा करते हैं ।
विस्लमदो तद्दिवस मोमंसित्ता णिवेदयदि गणिणे 1 विणणागमकजं विदिए तदिए व दिवसम्मि ॥ १६५ ॥
भावार्थ- आगन्तुक साधु अपने आनेके दिनमें पथके श्रमको मिटा करके तथा आचार्य व संघ शुद्धाचरणकी परीक्षा . करके दूसरे या तीसरे दिन आचार्यको विनयके साथ अपने आनेका प्रयोजन निवेदन करता है ।
आगंतुक णामकुलं गुरुदिखा माणवरसवास च । आगमण दिसासिक्खा पडिकमणादी य गुरुपुच्छा ॥ १६६ ॥
भावार्थ-तब गुरु उसके पूछते हैं - तुम्हारा नाम क्या है ? कुल क्या है? तुम्हारा गुरु कौन है ? दीक्षा कितने दिनोंसे ली है? कितने चातुर्मास किये हैं ? किस दशासे आए हो ? क्यार शास्त्राध्ययन किया है, कितने प्रतिक्रमण किये हैं तथा कितने मार्गसे आए हो इत्यादि ? प्रतिक्रमण वार्षिक भी होते हैं उसकी अपेक्षा गिनती पूछनी इत्यादि ।
जदि चरणकरणसुद्धो णिच्चुवजुत्तो विणीद मेधावी । तास कधिदव्वं सगसुद्सत्तीए भणिऊण ॥ १६७ ॥
भावार्थ-यदि वह आगंतुक साधु आचरण क्रियामें शुद्ध हो, नित्य निर्दोष हो, विनयी हो, बुद्धिमान हो तो आचार्य अपनी शास्त्रकी शक्तिसे समझाकर उसके प्रयोजनको पूर्ण करते हैं। उसकी शंकादि मे देते हैं ।