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तृतीय खण्ड ।
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जानकर उनका इष्ट धर्मकार्य सम्पादन करते हैं । श्री मूलाचार समाचार अधिकार में इसका वर्णन है - कुछ गाथाएं हैं
आपसे पजंतं सहसा दण सजदा सव्वे । वच्छल्लाणास 'गहपणमणहे समुट्ठन्ति ॥ १६० ॥
भावार्थ - किसी साधुको आते हुए देखकर सर्व साधु उसी समय धर्म प्रेम, सर्वज्ञकी आज्ञा पालन, स्वागत करन तथा प्रणामके हे उठ खड़े होते हैं ।
पच्चुग्गमणं किच्चा सत्तपदं अण्णमण्णपणमं च । पाहुणकरणोयकदे तिरयणसं पुच्छणं कुजा ॥ १६९ ॥
भावार्थ - फिर वे साधु सात पग आगे बढ़कर परस्पर नमस्कार करते हैं - आनेवाले साधुको ये स्वागत करनेवाले साधु साष्टांग नमस्कार करते हैं तथा आगंतुक साधु भी इन साधुओंको इसी तरह नमन करते हैं । इस पाहुणागतिके पीछे परस्पर रत्नकी कुशल पूछते हैं ।
आएसस्स तिरतं पियमा संघाडओ दु दादव्वो । किरिया संथारादिसु सहवासपरिक्खणाहेदूं ।। १६२ ॥
भावार्थ- आगन्तुक साधुका नियमसे तीन दिन रात तक बन्दना, स्वाध्याय आदि छः आवश्यक क्रियाओंमें, शयनके समय, भिक्षा काल में तथा मल मूत्रादि करनेके कालमें साथ देना चाहिये, जिसमें साथ रहने से उनकी परीक्षा हो जावे कि यह साधु शास्त्रोक्त साधुका चारित्र पालता है या नहीं ।.
आवासयठाणादिसु पडिलेहणवयणगहणणिक्खेवे । समाएग्गविहारे भिक्खग्गहणे परिच्छन्ति ॥ १६४ ॥